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कैसेसाथै
HAFUजागरूकता
. संसार का सार धर्म है, धर्म का सार सचेतनता है और सचेतनता का सार मुक्ति है। किसी साधक को यदि मुक्ति के पथ का अनुगमन करना हो तो उसे सचेतनता को जीवन का मेरुदंड बनाना होगा और सचेतनता को जीने के लिए धर्म की शरण स्वीकार करनी होगी। बुद्ध होकर जीने का अर्थ यही है कि वह अपने जीवन के समस्त क्रिया-कलाप सचेतनता के साथ सम्पन्न करे। संसारी तो संसार को सांसारिक दृष्टि से ही देखता है लेकिन बुद्ध और संबुद्ध होकर जब वह संसार को देखता है तो यही संसार उसके लिए मुक्ति का आधार बन जाता है।
कुछ लोग अज्ञानी होकर, कुछ बुद्धू होकर संसार को देखते हैं तो कुछ बुद्ध होकर दुनिया को देखते हैं। जो अज्ञानी और बुद्धू होकर संसार को देखते हैं उन्हें संसार का सारभूत तत्त्व उपलब्ध नहीं हो पाता । वे संसार में जन्म लेकर भी संसार का कोई बोध नहीं कर पाते । लेकिन जब बुद्ध पुरुष संसार को देखते हैं तो वे वैसे ही ऊपर उठने लगते हैं जैसे अतीत में स्वयं गौतम बुद्ध या महावीर हुए थे। वे इसी कारण से मुक्तिदूत बन सके क्योंकि उन्होंने संसार को आत्म-जागृत बनकर देखा । घटनाएँ तो हर किसी के सामने घटती हैं, कुछ उन्हें नज़र-अंदाज़ कर देते हैं और कुछ उन पर गौर करते हैं. उन पर ध्यान देते हैं और घटनाओं की मीमांसा करते हैं। जहाँ ऐसा होता है वहीं चमत्कार घटित हो जाता है। उनके
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