Book Title: Mahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 293
________________ 1 होते नहीं हैं, क्यों ? क्योंकि हर शुक्राणु में आत्मा प्रवेश नहीं पाती । यद्यपि आजकल परखनली में शिशुओं को बनाया जा रहा है लेकिन उसमें भी गर्भ के सारे साधन उपस्थित करने होते हैं । वैसा ही द्रव - तरल वहाँ उसी तापमान पर उपलब्ध कराना होता है। और अन्ततः तो उसे माँ के गर्भ में ट्रांसप्लांट करना ही होता है। और उसमें भी प्राणतत्त्व का प्रवेश होता है तभी वह जीवित रह सकता है। जब तक बैटरी में सेल नहीं लगाए जाएँगे तब तक रोशनी पैदा न हो सकेगी। आवश्यक नहीं है कि प्राणतत्त्व को प्रगट होने के लिए माँ का गर्भ मिले। परखनली भी एक गर्भाशय है, उसे भी गर्भ का ही रूप दिया गया है। जो-जो शरीर के निर्माण की प्राकृतिक व्यवस्था है वह प्रकृति के हाथ में ही है। एक हड्डी टूट जाए तो उसे जोड़ना डॉक्टर के लिए चुनौती भरा कार्य है। उसके बाद भी वह कैसी जुड़ेगी, सही जुड़ पाएगी या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन प्रकृति नौ महीने में अपना सब कुछ निर्माण कर देती है । वह भी सब कुछ सुव्यवस्थित ढंग से। माँ चलती-फिरती है, उठती - बैठती भी है, भीतर में सब कुछ संचालन भी होता होगा, फिर भी भीतर के सरोवर में नौका ढंग से बनती रहती है। यह प्रकृति की व्यवस्था है । इसलिए धर्म तो यही कहेगा कि जन्म से पहले भी उसका अस्तित्व रहा और मृत्यु के बाद भी उसका अस्तित्व रहेगा । 1 हमारे मन के किसी कोने में यह आस्था और श्रद्धा अवश्य विद्यमान है कि मरने के बाद भी व्यक्ति कहीं-न-कहीं अवश्य रहता है, तभी तो हम स्वर्गीय शब्द का प्रयोग करते हैं । स्वर्ग को स्थान समझते हैं और सोचते हैं कि हमारे आत्मीय या प्रियजन वहाँ रहते होंगे। तभी तो उनकी स्मृति में दान, धर्म या कोई कल्याणकारी कार्य किया जाता है । यह मान्यता है कि स्वर्गस्थ जीव के नाम पर जो दिया जाएगा वह उस आत्मा की सद्गति में सहायक होता है । बूढ़ेबुजुर्ग गुज़र जाते हैं तो उनके पीछे रोना-धोना नहीं करते। यह मानकर कि वह जीव पूरी उम्र पाकर गया है। बेटे - पोते सब रामजी राजी हैं उसके । स्वर्गवास के बाद तो वैसे भी रोने-धोने का मतलब नहीं है। रोओ तो तब जब उस जीव की गति बिगड़ गई हो । स्वर्गवास होना तो सद्गति को उपलब्ध होना है । और अच्छी योनि मिली, देव - गति प्राप्त हुई । कहते हैं : किसी महानुभाव की लड़की की मृत्यु हो गई । वह बहुत छोटी २८२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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