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मिलता है कि पाँच गाँव तो क्या हम एक इंच जमीन भी न देंगे तब श्रीकृष्ण ने कहा - धृतराष्ट्र आने वाला कल आपको कोसेगा, इतिहास आपको कलंक देगा कि यह वह पिता था जिसने एक बेटे के व्यामोह में आकर दूसरे बेटे के साथ सौतेला और छल-प्रपंच भरा व्यवहार किया ।
श्रीकृष्ण ने ऐसा संदेश दिया कि वे बिल्कुल नहीं चाहते कि युद्ध हो । मेरा मानना है कि अगर आज इन्सान अपने निहित चंद स्वार्थों के लिए युद्ध कर रहा होगा तो आने वाला कल उन्हें माफ़ नहीं करेगा । और सच्चे रूप में खुदा से या ईश्वर से पूछा जाए तो क्या वे चाहेंगे कि एक इन्सान द्वारा दूसरे इन्सान का कत्ल हो ? अगर यह मानें कि खुदा ने केवल मुसलमानों को बनाया, ईश्वर ने केवल हिन्दुओं को बनाया, गॉड ने केवल ईसाइयों को बनाया तब हम ज़रूर जुदा-जुदा हो गए। लेकिन जब हम कहते हैं कि प्रभु एक है, सबका मालिक एक है, सत्य एक है, खुदा एक है, सारी ज्योतियाँ एक हैं तब भेद कैसा । यह भेद उसके घर से नहीं है, हमारी संकीर्णताओं के कारण सारे भेद हैं। अगर एक जैन व्यक्ति चींटी को भी नहीं मारना चाहता, उसे बचाने की कोशिश करता है तो इसी कारण कि वह मानता है जैसे मैं एक आत्मा हूँ वह भी एक आत्मा है। जैसे मुझे जीने की इच्छा है वैसे ही उसे भी जीने की चाहत है, जैसे मैं मरना पसंद नहीं करता वैसे ही वह भी मरना पसंद नहीं करता। मैं भी जीना चाहता हूँ, वह भी जीना चाहता है । तभी तो महावीर कहते हैं - जीओ और जीने दो । Live & let live.
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हम लोग सभी धर्मों का, धर्म-शास्त्रों का सम्मान करते हैं । अगर मैं ईश्वर की प्रार्थना कर रहा हूँ तो मान लें कि खुदा की बन्दगी अपने आप हो ही रही है। मेरी दृष्टि में खुदा और ईश्वर एक ही हैं, शब्द भले ही अलग हों। उर्दू में रूह, इंग्लिश में सोल और हिंदी में आत्मा कहने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। दूध को दूध कहा या मिल्क कहा, दूध के तत्त्वों में फ़र्क नहीं आ गया अन्यथा मूल तत्त्व तो एक ही है। हमारे लिए जो आत्म-तत्त्व कहलाता है यह वो मूल तत्त्व है जो हम सबके जीवन का आधार है। यह शाश्वत तत्त्व है । हमारे जन्म से पहले भी इसका अस्तित्व रहा और हमारी मृत्यु के बाद भी इसका अस्तित्व रहेगा ।
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