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गांधीजी को गोडसे ने गोली मार दी थी, उनका प्राणांत हो गया तब गांधीजी के बेटे ने कहा था कि मेरे पिता अहिंसा के पुजारी थे इसलिए उनके हत्यारे को फाँसी की सजा न दी जाए, उसे भी अहिंसा का ही संदेश दिया जाना चाहिए। वह गोडसे से मिला, तब गोडसे ने कहा - मैंने तेरे पिता को गोली ज़रूर मारी है लेकिन गांधी कभी नहीं मर सकते। यह शरीर मरता है, आत्मा कभी नहीं मरती। गोडसे का भी शरीर मरेगा लेकिन जो चेतना है वह कभी नहीं मरेगी। हमारे यहाँ गीता में कहा है - नैनं छिंदंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः - आत्मा को न तो शस्त्रों से छेदा जा सकता है, न ही अग्नि से जलाया जा सकता है, आत्मा अमर है। शरीर और इसकी पर्यायों की धारणा है इसलिए जब कोई पर्याय अनुकूल या प्रतिकूल बनती है तब हम प्रतिकूल पर्यायों को गिरा दिया करते हैं। तभी भगवान कृष्ण ने अर्जुन से यही कहा था - जिन्हें तुम समझते हो ये मेरे परिजन हैं वे वास्तव में परिजन नहीं हैं। जो धर्म का साथ छोड़कर अधर्म का साथ दे रहे हैं, जो घर की बहू का चीर-हरण कर रहे हैं, जुए में षड्यंत्र करके अपने भाई के साथ अत्याचार कर रहे हैं, जो हर तरह की मर्यादा का त्याग कर चुके हैं तुम उन्हें किस आधार पर अपना परिजन कहोगे ? ये तो मर चुके हैं। अब केवल इन्हें नीचे गिराना है, इनकी आत्मा तो पहले से ही मर चुकी है। इनका मरना केवल चोलों का उतरना-भर है।
हमारे देश में आत्मा की शाश्वतता का संदेश दिया जाता है और कहा जाता है कि किसी के जन्मने पर खुश मत होओ और किसी के मर जाने पर गम मत करो। इसीलिए जब अभिमन्यु चक्रव्यूह में मारा जाता है और अभिमन्यु की माँ बहुत क्रन्दन करती है तब श्रीकृष्ण उसे कहते हैं - लगता है अभी तुमने अपने मन को ठीक ढंग से नहीं समझा। जीवन के मर्म को ठीक ढंग से नहीं जाना, भानजा तो मेरा भी है। इसलिए ये क्षण शोक करने के नहीं हैं। इसने अमरता हासिल की है। यह वीर गति को प्राप्त हुआ है । आने वाला इतिहास याद रखेगा कि अभिमन्यु ने अपने परिवार के लिए प्राणों का उत्सर्ग कर दिया । यदि तुम कृष्ण की सगी बहन हो तो मैं तुमसे कहूँगा कि अपनी ममता के मोह से, इसके व्यामोह से अपने पुत्र को मुक्त कर दो, ताकि वह तुम्हारे मोह के कारण दुनिया के आस-पास न मँडराता रहे। वह मुक्त होकर परम बैकुंठ धाम को प्राप्त करे।
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