Book Title: Mahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 297
________________ तब अभिमन्यु की देह के पास माँ आती है और यह कहते हुए मुक्त करती है - जाओ पुत्र, मैं माँ हूँ इसलिए तेरे प्रति ममता तो ज़रूर उमड़ेगी, लेकिन मैं तेरी मुक्ति में बाधा नहीं बनूँगी । जाओ, मैं तुम्हें अपनी ममता के पाश से मुक्त करती यह हमारी संस्कृति और अध्यात्म की बुनियाद है कि व्यक्ति इस तरह अपने आत्म-तत्त्व को स्वीकार कर रहा है। भगवान कृष्ण, जो अर्जुन को युद्ध करने के लिए प्रेरित तो करते हैं, फिर भी यही कहते हैं - अगर तू जीत जाएगा तो पृथ्वी पर राज करेगा और मर गया तो स्वर्गलोक का अधिपति बनेगा। दोनों ओर से तुम्हारी जीत ही है क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ और मैं इसलिए तुम्हारे साथ हूँ क्योंकि तुम धर्म के और धर्म तुम्हारे साथ है। हम कह सकते हैं कि आतंकवादियों को इस तरह के पैग़ाम देते हुए समझाया जाता है लेकिन वे सुधरते नहीं हैं। तो सबके अपने-अपने धर्म हैं, उसूल हैं और वे लोग अपने उसूलों को समझाने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन, उनके साथ सत्य नहीं है, धर्म नहीं है इसलिए हम कहते हैं कि वे गलत हैं। अगर वे किसी की बात करते हैं तो देखें कि वे ज़मीन के लिए लड़ रहे हैं। वे ज़मीन को ही अपना हक समझ रहे हैं जबकि कृष्ण ने अंतिम चरण तक यही प्रयत्न किया कि विश्व अगर टिका रहेगा तो शांति के बल पर न कि युद्ध के बल पर । उन्होंने अंतिम क्षण तक प्रयत्न किया कि किसी भी तरह युद्ध टाला जा सके तो युद्ध टल जाना चाहिए। वे स्वयं शांतिदूत बनकर जाने को तैयार हो गए, जबकि वे कोई राजदूत नहीं थे फिर भी वे कोशिश कर रहे थे कि उनके समझाने से ही अगर युद्ध टल सकता है तो ज़रूर टल जाना चाहिए क्योंकि युद्ध अंतिम से अंतिम शस्त्र है। जब इन्सान के पास कोई भी विकल्प न बच पाए तब इसके बारे में सोचना चाहिए। अन्यथा युद्ध पाप है। विश्वशांति और विश्व-बंधुत्व के लिए पाप है। तब श्रीकृष्ण हस्तिनापुर जाते हैं और धृतराष्ट्र से कहते हैं - राजन्, वर्तमान में सारी पृथ्वी का राज्य आपके अधीन है, आप चक्रवर्ती सम्राट हैं, चारों ओर हस्तिनापुर का ही शासन है, मैं आपसे अधिक नहीं केवल पाँच गाँव माँगता हूँ। आप पाँच गाँव भी देने को राजी हो जाते हैं तो मैं पांडवों की ओर से आपको वचन देता हूँ कि पांडव वापस लौट जाएँगे। लेकिन जब उन्हें यह सुनने को २८६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342