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को खयाल में रखते हैं, इनके प्रति जागरूक रहते हैं, अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करते हैं तो साधना का मार्ग; जो कठिन दिखाई देता है, वह सहज और सरल हो जाता है। मेरा तो मानना है- हंसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्। हँसो, खेलो और ध्यान धरो।
आज इतना ही अनुरोध, प्रेमपूर्वकनमस्कार !
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