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आध्यात्मिक
जीवनके - छ: नियम
रामप्रसाद 'बिस्मिल' की कहानी है। बताते हैं कि जब कारागार का सिपाही उन्हें यह कहने पहुँचा कि कल आपकी फाँसी होगी, रामप्रसाद ने जवाब में इतना ही कहा कि हाँ मुझे पता है। अगले दिन सिपाही सुबह से ही कारागार में सीखचों के पास खड़ा था और देख रहा था कि रामप्रसाद रोज की तरह उस दिन भी सुबह चार बजे उठा, निवृत्ति के लिए गया, स्नान किया, पूजा-पाठ करते हुए अपना योग और प्राणायाम, ध्यान-साधना करने लगा। सिपाही यह सब देखकर आश्चर्य से भर गया और रामप्रसाद से पूछा - ग़ज़ब की बात है, आज तुम्हें फाँसी पर चढ़ना है और तुम्हारे चेहरे पर किसी भी तरह की शिकन नहीं है। लेकिन एक बात रह-रहकर मेरे मन में उठ रही है कि जब तुम्हें पता है कि एक घंटे बाद तुम्हारी फाँसी हो जाने वाली है तो ये योग-प्राणायाम सब किसलिए कर रहे हो, जबकि ये सब तो स्वस्थ रहने के लिए किये जाते हैं।
रामप्रसाद मुस्कुराए और कहने लगे - भाई फाँसी लग रही है तो क्या हुआ जब तक हूँ तब तक तो हूँ। और जब तक हूँ तब तक अपने लिए गए नियम अंतिम साँस तक निभाना चाहिए। इसलिए मरने से पहले अपने मन में यह शिकवा लेकर नहीं जाना चाहता कि मैं अंतिम दिन अपनी क्रिया को छोड़कर गया। मैं योग और प्राणायाम इसलिए भी कर रहा हूँ ताकि मेरा मन रोज़ की तरह
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