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खरीद ली। पूणिया ने कहा
महाराज, आप सामायिक खरीदने आए हैं, आपके लिए तो जान भी हाज़िर है, सामायिक क्या चीज़ है, पर आपको यह बात अचानक सूझी कैसे ? श्रेणिक ने कहा- मुझे श्रीभगवान ने कहा है कि मैं तुमसे एक सामायिक खरीदकर उनके पास ले जाऊँ । अब तुम मुझे बताओ कि एक सामायिक की कितनी कीमत है ? पूणिया ने कहा- मैंने तो आज तक एक भी सामायिक बेची नहीं है, हाँ अगर आपको भगवान ने बता दिया हो कि अमुक राशि देने पर आपको सामायिक मिल सकती है तो मुझे देने में कोई आपत्ति नहीं है। आप स्वयं ही भगवान से पूछकर आए होंगे । श्रेणिक राजा ने कहा ने मुझे कीमत तो नहीं बताई है ।
भगवान
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कहते हैं कि राजा श्रेणिक भगवान के पास पहुँचता है और पूछता है भगवन् ! एक सामायिक की क्या कीमत हो सकती है ? भगवान ने कहा - राजन् तुम सामायिक की कीमत पूछते हो, सामायिक तो अनमोल होती है। तुम्हारे पास जितना राजकोष है, उससे अनंत गुना राजकोष भी अगर एक सामायिक के लिए लुटा दिया जाए तब भी सामायिक की साधना अनमोल ही रहेगी । और दूसरा उपाय कालकौसरिक को कैद करने का, तो सचाई यह है कि उसने अंधकूप में ही मिट्टी के पाँच सौ भैंसे बनाकर तोड़ डाले हैं, उनका वध कर दिया है और अपना संकल्प पूरा कर लिया है।
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राजा श्रेणिक को समझ में आया कि इन्सान के लिए एक सामायिक भी बेशकीमती होती है। सामायिक शांति की उपासना का व्रत है, समभाव स्थापित करने का व्रत है। घर में रहते हुए भी संन्यास को, संत - जीवन को जीने का पवित्र अनुष्ठान है। हर सद्गृहस्थ को नियम लेना चाहिए कि घड़ी, दो घड़ी, चौबीस मिनट या अड़तालीस मिनट सामायिक व्रत स्वीकार किया जाए । एकांत स्थान में बैठकर संकल्प लें, मौन और शांति का बोध भीतर ग्रहण करें, मन-वचन-काया के द्वारा स्वयं को प्रभु आराधना में, स्वयं को समत्वभाव में समर्पित करें। यह घर में रहते हुए भी संत - जीवन को जीने का एक उपाय हो गया। इस दौरान घटने वाली कोई भी घटना - हानि या लाभ की, मान-अपमान की, संयोग-वियोग, जन्म-मरण सभी को प्रकृति की व्यवस्था मानकर समत्व-भाव स्थापित करने का प्रयत्न करें। उतार-चढ़ाव की परिस्थितियों को
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