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कर लें। ऐसा करने से आप न केवल अपने मन में उठने वाले हर विचार, हर तरंग के साक्षी हो पाएँगे बल्कि अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं को पढ़ने व समझने में भी सफल हो जाएँगे। केवल अपने शरीर और अपने दिमाग पर काबू रखना है। सामायिक के संबंध में एक ख़ास घटना है।
___ राजा श्रेणिक प्रभु महावीर के पास जाते हैं और स्वयं की मृत्यु के बाद होने वाली गति के बारे में जानना चाहते हैं। प्रभु कहते हैं - मृत्यु के बाद तुम्हारी नरक गति होगी। श्रेणिक ने कहा - आपका शिष्य हूँ क्या फिर भी नरक गति मिलेगी? प्रभु ने कहा - मेरा शिष्य होने से कुछ न होगा, कर्म तो तुम्हारे ही काम
आएँगे। श्रेणिक ने पूछा - क्या मेरी नरक गति टल सकती है ? प्रभु ने कहा - टल तो नहीं सकती। श्रेणिक ने कहा - तब भी कोई उपाय हो तो बताइए । भगवान सोचते हैं और कहते हैं - एक उपाय हो सकता है, तुम पूणिया श्रावक के पास चले जाओ और उसकी सामायिक का एक व्रत खरीदकर ले आओ या फिर कालकौसरिक कसाई को एक दिन के लिए पशु-हत्या न करने पर मजबूर कर
दो।
श्रेणिक राजा था। उसे लगा कि उसके पास तो अथाह सम्पत्ति है। एक सामायिक तो शीघ्र ही खरीदी जा सकती है। पहले तो वे काल कौसरिक कसाई को पकड़ते हैं और अंधकूप में उतरवा देते हैं कि अब कहाँ जाएगा और पशुहत्या कैसे करेगा। प्रतिदिन पाँच सौ भैंसों की हत्या करना ही उसका नियम था। कहानी बताती है कि अंधकूप में बैठे-बैठे ही वह मिट्टी के भैंसे बनाने लगा और उनका वध करने लगा। इस तरह उसने अपने नियम को पूरा कर लिया। उधर राजा ने सोचा कि कौसरिक को अंधकूप में डाल दिया है वहाँ कैसे भैंसों को मारेगा अतः मेरी नरक गति तो टल ही गई।
इसके बाद वह पूणिया श्रावक के पास पहुँचता है। पूणिया त्यागी, तपस्वी सद्गृहस्थ है, संतों की तरह महान । श्रेणिक पूणिया से कहता है - मैंने सुना है तुमने बहुत-सी सामायिक कर ली हैं, उनमें से एक व्रत मुझे बेच डालो, इसके लिए जितनी राशि चाहिए ले लो। पूणिया चकराया कि सामायिक तो आत्मा का भाव है, समत्व भी आत्मा का भाव है, इसकी खरीद-फरोख़्त तो नहीं की जा सकती । यह कोई सब्जी-फल तो है नहीं कि मोल-भाव किया और
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