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पाँचवाँ आवश्यक कर्त्तव्य है - कायोत्सर्ग अर्थात् सत्ताईस श्वासोश्वास तक यानी लगभग तीन मिनट तक देहभाव का त्याग करते हुए आती-जाती श्वासों का अनुभव करना ही कायोत्सर्ग है। मन, वचन और काया के व्यापारों को रोककर आती-जाती सत्ताईस श्वासोश्वास पर ध्यान करना, समत्व का अभ्यास करना, विदेह-भाव का अभ्यास करना, आत्मभाव को स्थापित करना, श्वासों की विपश्यना करना - यही कायोत्सर्ग है। काया के प्रति जो देहभाव है उसका विसर्जन करना ही कायोत्सर्ग है। यह एक सुन्दर प्रक्रिया है। हम लोग यहाँ ध्यान-साधना के दौरान यह क्रिया करते हैं। व्यक्ति सबसे पहले आती-जाती सत्ताईस श्वासोश्वास पर अपने चित्त को केन्द्रित करे, फिर अपने शरीर के एकएक अंग के संवेदन पर ध्यान देते हुए अनुपश्यना करे । विपश्यना करते हुए अपनी सम्पूर्ण देह की यात्रा करे, ऊपर से नीचे तक नीचे से ऊपर तक । इस तरह व्यक्ति जब पिंडस्थ ध्यान करता है, अपने शरीर पर ध्यान करता है तो यह कायोत्सर्ग कहलाता है। इस देह के स्वरूप को समझा, जाना यह अनित्य है, यह अपवित्र है, यह हमसे भिन्न है, यह अकेली आती है, अकेली जाती है। हम सभी इसमें मुसाफ़िर की तरह रहते हैं। जैसे मकान में या धर्मशाला में कोई व्यक्ति आकर रहता है वैसे ही यह शरीर है, भाड़े का घर है। हम इसमें आते हैं और चले जाते हैं। जिनके भीतर यह भाव प्रगाढ़ होता है भगवान कहते हैं यह हमारा पाँचवाँ कर्त्तव्य होता है। इसलिए हम प्रतिदिन तीन मिनट से लेकर तीस मिनट तक अवश्य ही कायोत्सर्ग ध्यान करें। ___अंतिम और छठा आवश्यक कर्तव्य है - प्रत्याख्यान । प्रत्याख्यान का अर्थ है ऐसा संकल्प, ऐसा नियम जो हमें पाप-कार्यों से या खाद्य-पदार्थों से, जिनका हम उपभोग कर रहे हैं, उन पर अंकुश लगाना है । पच्चखाण करना ही प्रत्याख्यान है। यह उपयोगी नियम है। जैसे रात्रि भोजन पर अंकुश लगाना । भोजन करने के लिए पूरा दिन पड़ा है। खा-खाकर कितना खाओगे ! दिन भर खा लिया । सूर्यास्त हो गया तो खाना खाना बंद । ज़्यादा से ज़्यादा पेय पदार्थ ले लो। इससे खाने-पीने पर अंकुश रहेगा। अगर आप सूर्यास्त से सूर्योदय तक खाना नहीं लेते तो आपके १२ घंटे का उपवास हो गया। कितना सरल धर्म हो गया कि खाना खाते हुए भी उपवास । दिन का खाना, रात को उपवास करना ।
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