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विराजती है, उसके तो आँगन में भी श्रीप्रभु का निवास हुआ करता है। इस तरह मन ही समस्त गतिविधियों का आधार है । व्यक्ति मन की प्रेरणा से ही सारे काम करता है। मन अगर ठीक है तो गतिविधि भी ठीक दिखेगी । मन के ठीक होने पर हाथों से कार्य भी ठीक होंगे। मन अगर ख़राब है तो आँखें भी ख़राब चीज़ों को देखेंगी और जब ख़राब देखेंगे तो हाथ भी ख़राब ही होंगे। ज्ञानी कहते हैं इन्सान के लिए ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ तप है। ध्यान का उद्देश्य भी यही है कि व्यक्ति का मन ठीक हो जाए। पवित्र मन अपने-आप में चलता-फिरता मंदिर है, तीर्थ है, गंगा - यमुना का संगम है ।
हम अपने मन से रूबरू हों और पहचानने की कोशिश करें कि हमारे मन की क्या स्थिति है। पहले यह मत ढूँढ़ो कि मैं कौन हूँ। पहले यह देखो कि यह मन कहाँ उलझा हुआ है, किसमें फँसा हुआ है - मोह में, माया में, परिग्रह में, क्रोध में, विकार-वासना में । जहाँ-जहाँ मन उलझा हुआ है वैसी ही आत्मदशा होगी, वैसा ही गुणस्थान होगा, वैसी ही गति - सद्गति-दुर्गति होगी। हमारा मन संस्कारों से, घेरों से बँधा हुआ है। जो भी इस रहस्य को समझ जाएगा वह न केवल अपनी मुक्ति और आध्यात्मिक चेतना को उपलब्ध हो जाएगा वरन् जीवन के असंभव से असंभव कार्यों को पूरा कर लेगा । If you can see invisible you can do impossible. अगर तुम अदृश्य को देख सकते हो तो असंभव को भी संभव कर सकते हो ।
इन्सान स्थूल शरीर को तो देखता है लेकिन अपने सूक्ष्म मन को देखने की कोशिश नहीं करता । किसी को फुर्सत ही नहीं है कि वह अपने मन को देखे, समझे और ठीक करे । विश्व के सारे विद्यालय, महाविद्यालय शिक्षा दे रहे हैं, कैरियर बना रहे हैं, लेकिन मन को सुधारने और सँवारने की कोई पाठशाला नहीं है। ऐसी पाठशाला जिसमें शरीक़ होकर इंसान अपने मन को सँवारे, सुधारे, संस्कारित करे, निर्मल करे, शांति और आनन्दमय बनाए ।
एक बात बताएँ, कोई आदमी बंदूक चलाता है और एक व्यक्ति मर जाता है तो बताएँ उसे किसने मारा ? व्यक्ति ने या बंदूक की गोली ने ? आपका कहना यह है कि बंदूक की गोली ने तो मैं आपके हाथ में एक कारतूस दे देता हूँ आप मुझे मार के दिखा दो । क्या मैं मरूँगा ? नहीं । व्यक्ति गोली के कारण
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