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हमारे भीतर जो अंधा प्रवाह उठा, अंधी प्रेरणा आई उसी का नाम लेश्या है । मन, वचन, काया की वह प्रवृत्ति जो हमें अपने प्रभाव में ले ले, लेश्या कहलाती है ।
'लेश्या' महावीर का बहुत ख़ूबसूरत विज्ञान, मनोविज्ञान है । अभी-अभी पढ़ने-सुनने में आया कि मुंबई में एक बिल्डर ने मजदूरिन के साथ बलात्कार किया और उसे उम्रकैद की सजा मिल गई। यह क्या है ? एक अंधा प्रवाह है। जबकि उसके पत्नी है, बच्चे हैं, अच्छा-सा बँगला और गाड़ी है, लेकिन मन में विकार का अंधा प्रवाह उठा और दुष्कर्म कर गया। दुष्कर्म तो हो गया पाँच-सात मिनिट में, लेकिन परिणाम जीवन भर का हो गया - उम्रकैद । ऐसा अंधा प्रवाह उठता है और यह हो गई अशुभ लेश्या ! कभी-कभी शुभ लेश्या का भी उदय हो जाता है। जैसे कहीं मंदिर बना है, उसकी प्रतिष्ठा हो रही है और मूर्ति की स्थापना की जानी है। स्थापना का चढ़ावा बोला जा रहा है। दो लाख, पाँच लाख, एक करोड़... पाँच करोड़, सवा पाँच करोड़ पर बोली पूरी हो गई । सवा पाँच करोड़ रुपये खर्च हुए, यह क्या था ? किसने उसे ऐसी प्रेरणा दी जिसके कारण उस व्यक्ति ने सवा पाँच करोड़ रुपये का चढ़ावा बोल दिया । भीतर जो प्रवाह उठा वह शुभ हो गया। यह शुभ लेश्या है। शुभ लेश्या का उदय है। दोनों जगह जोश चढ़ा, प्रवाह उठा जब बलात्कार किया तब भी और पाँच करोड़ की बोली ली तब भी। दोनों में ही लेश्या का उदय हुआ। दोनों में ही भाव, दोनों में ही जोश उठा, दोनों में ही होश खो गया। होशपूर्वक खर्च करता तो जब मंदिर बन रहा था तभी देता लेकिन मंदिर बन गया, सैकड़ों लोग इकट्ठे हो गये, सब आव-ताव में बैठे हैं, सब बोलने शुरू हो जाते हैं, उस समय होश चला जाता है जोश रह जाता है ।
होशपूर्वक किया गया कार्य मुक्ति का द्वार बनता है । और अंधे जोश से किया गया कार्य व्यक्ति को प्रायश्चित देता है । हम सभी शुभ-अशुभ लेश्या से घिरे हुए हैं कोई भी इसका अपवाद नहीं है। क्योंकि हम साधना मार्ग से जुड़े हुए हैं। इस मार्ग पर चल रहे हैं और मुक्ति तत्त्व को जीने का प्रयत्न कर रहे हैं इसलिए अपन सूक्ष्म से सूक्ष्म उदयशील, उदयमान लेश्या को समझ सकते हैं आम आदमी रोज़मर्रा के रुटीन से बँधा हुआ है उसे न तो लेश्याओं का बोध है,
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