________________
न कोई होश है। उसमें तो बस प्रवाह उठ रहा है - अज्ञान का, मोह का उदय है, धन के प्रति पैसे का ममत्व जुड़ा हुआ है, उसके भीतर आसक्ति हो रही है। वह उसी आसक्ति से भरा हुआ जी रहा है। जीता रहता है और एक दिन मर जाता है। हम जो ध्यान के रास्ते पर चल रहे हैं अपने मोह, ममत्व, आसक्तियों को समझने का प्रयास कर रहे हैं। हम समझने का प्रयत्न कर रहे हैं कि हमारे भीतर ऐसी कौनसी प्रवृत्ति आई जिसने हमारी ज्ञान-दशा को, ध्यान-दशा को ढक डाला।
यह तो तय है कि कभी-कभी सूरज भी बादलों में ढंक जाता है। वैसे ही हमारा ज्ञान-ध्यान भी कभी हमारे भीतर उदय होने वाली मोह-मायामूलक लेश्याओं के कारण ढंक जाया करता है। बादलों की क्या औकात कि वे सूरज को ढंक सकें, पर फिर भी ऐसा हो जाता है। ऐसे ही हम लोग भी, जिनके भीतर ज्ञान भी है, ध्यान भी है, होश, बोध भी है, सत्संग भी है - सब कुछ होते हुए भी हम लोग कमज़ोर हो जाते हैं। कौन है वह जो हमें कमज़ोर कर देता है ? श्रीभगवान कहते हैं उसी का नाम 'लेश्या' है। लेश्या' जो हमें घेर ले। व्यक्ति अगर कोई भी काम बोधपूर्वक करे तो उससे कोई गलत काम न होगा। लेकिन जैसे ही फोर्स - अंधा प्रवाह उदय में आ जाएगा, तब-तब इंसान से गलत काम हो जाएगा। फिर वह कुछ भी हो सकता है। इस फोर्स के उठते ही अपन सब गिर जाते हैं। यह फोर्स शांत हो सकता है। हम सभी इसीलिए ध्यान का प्रयोग करते हैं। ध्यान से पहले मुक्ति नहीं मिलती बल्कि पहले तो हम अन्तर्मन को शांतिमय बनाने का प्रयत्न करते हैं। अन्तर्मन को संस्कारित करने का प्रयत्न करते हैं। हमारा जो तामसिक, तमोगुण प्रधान मन है उसमें सतोगुण प्रधान तत्त्वों का संचार करने का प्रयास करते हैं। चाहे कोई रामनाम जपे या नवकार मंत्र, या फिर वाहे गुरु का पाठ करे अथवा दिन में पाँच बार नमाज़ अदा करे - ये सब माध्यम हैं मन को संस्कारित करने के लिए। ऐसा नहीं होने वाला कि ऊपर से कोई खुदा या भगवान आएँगे जो हम लोगों को ठीक करेंगे । हम तो अपने मन में जैसी चीजें भीतर डालेंगे वैसा ही बाहर परिणाम आएगा।
अगर हम भगवान को बार-बार याद करेंगे तो हमारी स्मृति में भागवान कम भगवान ज़्यादा याद आयेंगे । जब भगवान अधिक याद आएँगे तो भागवान
२३१ www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only