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हैं लेकिन उसके मुँह पर आते-आते ही अगर हमने अंकुश लगा लिया तो हम खुद में सिमट आएँगे। इसके लिए एक शब्द है - वचन-गुप्ति । वचन का गोपन कर लेना चाहिए। इसके लिए एक शब्द आया है - भाषा समिति । भाषा का हमेशा विवेकपूर्वक उपयोग करना चाहिए। जब भी भाषा अविवेकी हो जाए उस पर नियंत्रण करना ही भाषा-समिति है, वचन-गुप्ति है, इसी को मैं वाणी-संयम कहता हूँ।
पुरानी कहानी बताती है कि बुद्ध को किसी ने गालियाँ दीं। जब वह गाली देते-देते थक गया तो बुद्ध मुस्कराये और बोले - तुमने मुझे बहुत - सी बातें कहीं लेकिन मैं तुमसे पूछता हूँ अगर तुम्हारे यहाँ कोई रिश्तेदार आए और तुम उसे खाना खिलाना चाहो और वह न खाए तो खाना किसके पास रहेगा ? उसने कहा - अगर वह नहीं खाए तो मेरा खाना मेरे पास ही रहेगा। बुद्ध ने कहा - तुमने मुझे बहुत-सी बातें कहीं, पर मैं तुम्हारे उस रिश्तेदार की तरह हूँ जिसे तुमने खाना तो परोसा पर उसने खाना स्वीकार नहीं किया।
अस्वीकार करना, वाणी-संयम का भाव है कि जब भी व्यक्ति भाषा का प्रयोग करे, संयमपूर्वक करे। बोलना अगर चाँदी है तो मौन रहना सोना है। सबसे भली है चुप । या तो मौन रहो या
ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करै, आपहुं शीतल होय ।। या -
देते गाली एक हैं उलटे गाली अनेक ।
जो तू गाली दे नहीं, तो रहे एक की एक ।। जो भाषा बोली जाए उसमें संयम की सुवास होनी चाहिए। प्रतीत होना चाहिए कि यह सज्जन व्यक्ति की भाषा है। भाषा व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना है। उसकी कुलीनता का प्रतीक है। वही कुलीन है जिसकी भाषा और व्यवहार मर्यादित हो, गरिमापूर्ण हो।
___ मन, वाणी के पश्चात् तीसरा संयम है : कायिक-संयम । अपनी पंचेन्द्रियों पर नियंत्रण रखना देह का, काया का संयम है।
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