________________
हम चाहे सांसारिक जीवन जिएँ या आध्यात्मिक जीवन जिएँ, हमारे गुण ही हमारा उत्थान करते हैं । गुणवान व्यक्ति ही सदा सम्मान पाएगा और ऊँचाइयों को उपलब्ध होगा । जो दुर्गुणी है या निर्गुणी है उसे कहीं भी कोई सम्मान नहीं मिलता है। भगवान महावीर हमारे सामने साधना का एक ऐसा नक्शा रखते हैं जो यह बताता है कि यहाँ से रवाना होना है, यहाँ तुम खड़े हो, इधर-उधर के रास्तों से जाना है, इतनी-इतनी, ये-ये मुश्किलें आएँगी, तुम्हें कब कहाँ किससे सम्बल लेना होगा और कहाँ किस चीज का त्याग करना होगा । किस तरह से तुम आगे बढ़ोगे, कहाँ कौनसे ऐसे घेरे आएँगे जो तुम्हें उलझा देंगे और इनमें उलझकर तुम शिखर तक न पहुँच पाओगे
महावीर की बात इसलिए कीमती है क्योंकि उन्होंने उस किनारे को देखा है, फिर भी पीड़ित आर्त लोगों के प्रति करुणाभाव से प्रेरित होकर कहना चाहते हैं कि मैं तो वहाँ तक देख आया हूँ अब तुम आओ और मेरी अँगुलियाँ थामकर वहाँ तक निकल चलो। महावीर अकेले मुक्त नहीं हुए। उन्होंने अकेले ही सारी गुणवत्ताओं को हासिल नहीं किया । अपने साथ हज़ारों हज़ार लोगों को मुक्ति का मार्ग दिखाया, उस पर लेकर चले । एक ऐसे स्थल की ओर जहाँ इतना अपरिसीम सुख और आनन्द मिलता है कि इस संसार में समृद्धि के द्वार पर खड़े चक्रवर्ती सम्राट् या बड़े से बड़े अमीर आदमी को भी नहीं मिलता । सिद्ध बुद्ध मुक्त आत्माओं और चेतनाओं को क्षण भर में जो आनन्द मिलता है वह समृद्ध से समृद्ध व्यक्ति को जीवन भर में भी नहीं मिल पाता । महावीर स्वयं मुक्त आत्मा, परमात्मा एवं विदेह - पुरुष हैं इसीलिए देह से भिन्न होकर देह को देख रहे हैं और विदेह होने की कला हम सभी को सिखा रहे हैं ।
1
हम सभी महावीर की गुणस्थान की ज्यॉमिति को समझते हुए देखते हैं कि हम कहाँ खड़े हैं और किन-किन पड़ावों से हमें गुज़रना पड़ेगा। महावीर हमें सत्य के उगते हुए सूरज की ओर ले जाते हुए कहते हैं कि किस तरह से मैं जाकर आया और किस तरह तुम्हें भी एक-एक पड़ाव पार कराते हुए मुक्ति धाम की ओर, निर्वाण और मोक्ष की ओर, जन्म-मरण से मुक्त होने की ओर, लोक और भव - चक्र से मुक्त हो जाने की तरफ ले चल सकता हूँ । महावीर ने 'गुणस्थान' शब्द का प्रयोग करके बताया कि हम सब कहाँ खड़े हैं। उन्होंने चौदह धरातल,
१८० Jain Bacation International
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org