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गुरुजी ने मारा सोटा और जनम-जनम का सोया हुआ रज्जब जग गया। यानी कि साधना अपने-आप में प्रकट हो गई। ज़िंदगी में कोई ऐसा सोटा मारने वाला गुरु मिल जाए तो ही व्यक्ति की आत्मा जग पाती है वरना अज्ञान में सोये जीव को जगाना आसान नहीं है। सोया रहता है अपनी मूर्छा में, मिथ्यात्व व माया में। माया की परतें जल्दी से हटती नहीं हैं। सद्गुरु का महत्त्व ही इसीलिए है कि वे आते हैं और जगा देते हैं कि कब तक सोया रहेगा। इस मूर्छा की गहरी नींद से जगाने वाला व्यक्ति ही सद्गुरु है।
जब कोई व्यक्ति जागरूकता की ओर बढ़ता है तब कहीं उसके जीवन में आठवाँ धरातल प्रगट होता है जिसे भगवानश्री ‘अपूर्वकरण' नाम देते हैं। इस धरातल पर चलने वाले साधक का आभामंडल अपूर्व हो गया है। यहाँ अपूर्व स्थिति हो गई है। जैसी स्थिति पहले थी अब वह स्थिति नहीं रही। अब तो उसके भीतर ऐसी अद्भुत क्रांति हो गई है, चेतना में वह रूपान्तरण हो गया है कि पाषाण पाषाण न रहा, पाषाण भी परमात्मा होने के करीब हो गया। अब तो ‘पद घुघरू बाँध मीरा नाची रे' - अब तो ऐसी थिरकन आ गई, ऐसा आनन्द चित्त में फूट पड़ा कि भगवान उसे अपूर्व-अपूर्व-अपूर्व दशा कहते हैं। ऐसी सच्चिदानंदमयी दशा जाग्रत हो गई जो इस लोक-चक्र में अभी तक नहीं थी।
यह आठवीं स्थिति अद्भुत स्थिति है। कोई भी साधक मुक्त चेतना की ओर तभी बढ़ता है जब वह अपनी आत्म-दशा में अतिशय श्रद्धा से भरी हुई, सत्य के सूर्य के प्रकाश की दशा से गुजरता है। तभी आगे के धरातल इन्सान के करीब आते हैं। आगे के धरातल क्या हो सकते हैं यह तो तभी समझने चाहिए जब वह पहले धरातल से निकलकर आगे बढ़ते हुए आठवें धरातल पर कदम रख देता है तब उसे स्पष्ट रूप से आगे के धरातल खुद-ब-खुद नज़र आने लगते हैं। जब व्यक्ति इस दशा तक नहीं पहुँचता है तब आगे के अदृश्य लोक में दिखाई देने वाले धरातल व्यक्ति की पकड़ में नहीं आ पाते । केवल ऊँचे शिखरों को देखो मत, बल्कि अपने भीतर विश्वास जगाएँ, सत्य के प्रति निष्ठा जगाएँ और चार कदम आगे बढ़ाएँ। अपनी ओर से इतना ही अनुरोध है।
आप सभी को प्रेमपूर्ण नमस्कार।
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