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गुण ही उसकी पूजा करवाते हैं न कि उसकी धन-सम्पत्ति या कुलीनता । ये उसे महानता नहीं देते वरन् व्यक्ति की गुणवत्ता ही उसे महानता देती है । खाली बोरी कभी खड़ी नहीं हो सकती । उसे खड़ा रखने के लिए उसमें कुछ-न-कुछ भरना ही होगा । व्यक्ति जन्म तो लेता है, पर अच्छे व्यक्तित्व का मालिक बनकर ही स्वयं को दुनिया में स्थापित कर सकता है और अपनी आध्यात्मिक उन्नति को भी उपलब्ध कर सकता है । सांसारिक उन्नति हो या आध्यात्मिक - दोनों के लिए व्यक्ति की गुणवत्ता आवश्यक है ।
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मैंने कभी बादशाह हसन की कहानी पढ़ी थी । एक दफ़ा वज़ीर और सभासदों ने मिलकर बादशाह से जिज्ञासा प्रकट की कि हम नहीं समझ पाए कि वह क्या वज़ह है जिससे आप इतने महान सुलतान हो गए। आपके पास न तो बहुत अधिक सम्पत्ति रही, न ही आपके पास कोई बड़ी सेना थी, फिर भी आप सुलतान कैसे बने ? बादशाह हसन मुस्कुराए और ज़वाब में कहा मैं नहीं जानता कि मैं सुलतान कैसे बन गया, पर इतना ज़रूर जानता हूँ कि जो व्यक्ति अपने मित्रों से प्रेम करता है, अपने शत्रुओं के प्रति भी उदारता बरतता है और हर व्यक्ति के प्रति सद्भाव रखता है, जिसमें ये तीन गुण रहते हों वे क्या सुलतान बनने की योग्यता नहीं दिलाते ?
मुझे हसन की बातों ने प्रभावित किया कि आदमी के गुण ही उसकी इज़्ज़त करवाते हैं | लक्ष्मी तो चंचल है सो पैसा तो आता है, चला जाता है इसके आधार पर अगर मूल्यांकन किया जाए तो राजा की पूछ तभी तक होगी जब तक वह अपनी सीमा में रहेगा और उसके पास धन होगा । कोई भी बड़े से बड़ा पदाधिकारी तब तक सम्मान प्राप्त करता रहेगा जब तक वह किसी पद पर आसीन रहेगा। लेकिन जिस व्यक्ति के भीतर महान गुण होते हैं वह स्वयं में ग्रेट होता है। मैं भी और आप भी खुद को ग्रेट और फुल बनाएँ । ग्रेट अर्थात् महान और फुल अर्थात् पूर्ण - अपने आपको महान और पूर्ण बनाना ही तो साधक का लक्ष्य होता है । साधारण स्तर से उठकर असाधारण चेतना के स्वामी बनें । ग्रेटफुल होने के लिए ही तो साधक पूर्णता की साधना करता है। जब तक पूर्णता की साधना के लिए पूर्ण प्रयत्न नहीं करेगा तब तक वह पूर्ण तत्त्व को उपलब्ध नहीं कर पाएगा ।
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