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बोले - आपकी बात समझ में न आई। एक को आपने मना कर दिया और दूसरे को इज़ाज़त दे दी। मैंने कहा - हाँ, इज़ाज़त तो दे दी । उसने कहा - फिर आपने आपने क्या पूछा था ? उसने बताया कि उसने
कहा था
मुझे मना क्यों किया। मैंने कहा क्या वह प्रार्थना करते हुए सिगार पी सकता है ? तो मैंने आपको मना कर दिया। प्रार्थना करते हुए सिगार पीना अच्छी बात नहीं है । लेकिन अगर कोई पूछता है कि सिगार पीते हुए प्रार्थना कर सकता हूँ तो मैं इज़ाज़त दूँगा और कहूँगा तुम ऐसा कर सकते हो ।
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एक व्यक्ति मंदिर में प्रार्थना करते हुए शराब की बोतल को याद करता है तो यह उसके लिए गलत है लेकिन कोई मदिरालय में खड़ा होकर शराब पी रहा हो और पीते हुए भी श्रीभगवान को याद कर रहा है तो यह उसके लिए पुण्य की बात है । सोच और नज़रिए का फ़र्क़ है कि एक गलत रास्ते पर जाते हुए भी ईश्वर को याद करता है और दूसरा ईश्वर के रास्ते पर चलता हुआ भी गलत काम करने की सोचता है। दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो धर्म करते हु भी धंधा कर जाते हैं और कुछ धंधा करते हुए भी उसमें धर्म करने का विवेक रख लेते हैं। धर्म करते हुए धंधा करना पाप है, धंधा करते हुए भी उसमें धर्म कर लेना पुण्य है ।
तीसरा धरातल 'मिश्र' है । थोड़ा इधर का भी थोड़ा उधर का भी ।
चौथा धरातल है - व्यक्ति जो मिश्र धरातल पर जी रहा था वहाँ उसे अहसास होने लगा कि दोनों नावों पर सवार होकर नहीं चला जा सकता। एक ही नौका को महत्त्व देना होगा और तब वह परमात्मा के हाथ को थामने का मानस बना लेता है और इसे कहते हैं- 'सम्यक्दर्शन या सम्यक् दृष्टि' का धरातल । जहाँ व्यक्ति के भीतर अन्तर्दृष्टि, चैतन्य - दृष्टि, आत्मदृष्टि का भाव उजागर हो जाता है। यहाँ व्यक्ति उस धरातल पर आ गया है जहाँ अनासक्ति का फूल खिलाने के लिए सत्य में आस्था रखेगा । सत्य के प्रति श्रद्धा यानी आस्था जग गई । ईश्वरीय तत्त्व के प्रति श्रद्धा और आस्था की लौ सुलग यह चौथा धरातल हुआ जहाँ व्यक्ति के अन्तर्मन में सिद्धत्व, बुद्धत्व और ईश्वरीय चेतना के प्रति आस्था का फूल खिला । श्रद्धा बलवती राजन् ! श्रद्धा ही एकमात्र ताकत है जिसके बलबूते अस्सी वर्षीय वृद्ध भी चारों धाम की यात्रा
उठी ।
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