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से कहे गये दो शब्दों को नहीं भूल पाता । पता नहीं चलता कि मोह-माया किस तरह के शब्दों से हमारा रास्ता रोक लेगी। यह जीवन का सच है ।
ज्ञानी इन दुःखों को समझते हैं, वे इसे दूसरे का नहीं अपना दुःख समझते हैं और इसे दूर करने का प्रयत्न करते हैं । दुःख को समझ लेने के कारण ही वे संसार में नहीं रहते, चार कदम बाहर निकलकर संन्यासी बन जाते हैं । कितनी बड़ी बात है कि एक राजकुमार संन्यासी बन गया । भोगी थे मगर योगी हो गए। उत्तर हर तरह का था लेकिन वे खुद अनुत्तर बन गए। समाधान पाना है तो समस्याओं से जूझना तो होगा। नदी का संगीत सुनना है तो नदी में गिरे हुए पत्थरों का सामना करना होगा। माया को, मकड़जालों को काटना होगा । अपनी-अपनी लेश्याओं को भी समझना होगा । हर व्यक्ति बाहर के संसार में कम, भीतर के मकड़जाल में अधिक उलझा हुआ है। जब व्यक्ति दूसरे के दुःख को अपना समझ लेता है तभी असली दया, असली करुणा और असली अहिंसा का जन्म होता है। तब स्वतः आत्मिक तौर पर आध्यात्मिक सहानुभूति पैदा होती है, अंतरंगीय सहानुभूति उत्पन्न होती है ।
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अभी-अभी मैंने सुना कि एक लड़का रास्ते पर खड़ा था और वहाँ से निकलने वाली हर कार को हाथ हिला-हिलाकर, आवाज़ें लगा-लगाकर रोकने की कोशिश कर रहा था । पर कोई भी कार रोक ही नहीं रहा था । आखिर उससे रहा न गया, उसने पत्थर उठाया और अगली आने वाली कार के काँच पर मार दिया । काँच फूट गया । कार चलाने वाला गुस्से से भर गया । उसने गाड़ी रोकी, वह जल्दी में था, अपने बच्चे को लेने जा रहा था और यहाँ उसकी कार के शीशे को तोड़ दिया गया । वह नीचे उतरा, उस बच्चे को पकड़ा और जोरदार पिटाई कर दी। चिल्लाया - बद्तमीज, तूने मेरी नई कार का शीशा फोड़ दिया । लड़के ने रोते हुए कहा सर, आप मुझे भले ही और मार लें, मेरा इरादा आपकी कार को नुकसान पहुँचाने का नहीं था, मैं तो बस आपकी कार रोकना चाहता था । उसने पूछा - किसलिए रोकना था ।
बच्चे ने बताया कि सड़क की दूसरी ओर एक घायल लड़का पड़ा है 1 अगर उसे मदद न मिली तो वह मर जाएगा। मैंने कई कार वालों को रोकने की कोशिश की पर कोई रुका ही नहीं। मेरे पास कार को रोकने के लिए इसके
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