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का दरवाजा खुला रखना चाहते हैं तो शुभ खर्च का दरवाजा भी खुला रखिए। मैंने कभी गीत सुना था - 'तुम एक पैसा दोगे, वह दस लाख देगा' - यह शायद ज़्यादा हो गया फिर भी दस गुना तो मान ही लेते हैं। एक बीज के बोने पर दस गुना फल तो मिल ही जाते हैं।
भगवान की पवित्र देशना तो यही है कि हमें हमेशा शुभ भाव धाराओं को प्राथमिकता देनी चाहिए और शुभ भाव-धाराएँ बन सकें इसके लिए मन को, दिमाग को ठीक करें। अगर मन में किसी प्रकार का वैर-वैमनस्य है तो उसे भुला दें। अन्यथा दुश्मन को देखते ही दिमाग असंतुलित हो जाएगा। घर में जेठानी से या भाई से विरोध है तो सबसे पहले उन्हें गले लगा लें। ये ईद के, दीपावली के पर्व इसीलिए आते हैं कि हमारे पाप कटें, वैर-वैमनस्य कम हों। पर्दूषण की सांवत्सरिक क्षमापना का भी यही अर्थ है कि वर्ष भर में जो गिलेशिकवे, वैर-विरोध रहा उनसे बाहर निकलें। क्षमा कर दें। क्षमा करना मन को स्वस्थ करने का सबसे सरल और सबसे अच्छा साधन है। क्षमा मांगने और क्षमा करने से मन तनावमुक्त हो जाता है। दिमाग में जो बोझ पड़ा रहता है वह उतर जाता है। जहाँ पहले खून खौल जाता था अब वहाँ खून बढ़ जाता है। कभी-कभी गले भी मिलना चाहिए। इससे एक-दूसरे की तरंगें आपस में प्रभावित करती हैं। कभी-कभी यह ध्यान भी करना चाहिए कि जिसके प्रति मन में दुर्भाव है उसे अपने पास बिठा लें, दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ लें फिर दोनों ही ध्यान करें। वह तुम्हारे लिए और तुम उसके लिए मंगल मैत्री-भाव ले आएँ। इन शुभ भावधाराओं के कारण पूर्व में किए गए सारे वैर-विरोध के अनुबंध खुल जाते हैं, सारे पाप धुल जाते हैं और दोनों की आत्माएँ निर्मल व पवित्र हो जाती हैं।
शुभ कार्य में देरी न करें, तुरंत कर डालें। अशुभ कार्य कल पर टालें। क्षमा माँगें, क्षमा करें। चित्त को हलका करने का, चित्त में पड़े अशुभ भावों को दूर करने का यही सबसे सीधा और सरल तरीका है। अगर हमारे चित्त में जल्दी तेजी आती हो और इस कारण गलत-सलत बोलने लग जाते हों, हमारी भाव धाराएँ अशुभ हो जाती हों तो कृपया अपनी उत्तेजनाओं का त्याग कीजिए । एक घटना मैं बार-बार दोहराता हूँ और लगता है कि जीवन को बदलने के लिए, जीवन में शांति और संयम रखने के लिए मैं इस प्रेरक घटना को श्रेष्ठ मानता हूँ।
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