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अहिंसा का सम्मान करें। हमारे द्वारा सत्य का समर्थन हो । हमारे द्वारा चोरी कर्म न हो जाए। हम अनावश्यक परिग्रह न करें। हमसे दुःशील, गलत आचरण न हो जाए। धर्म के विचारमूलक और जीवनमूलक जो आचरण होते हैं उन्हें जीवन से जोड़े रखने का हमें विवेक और बोध रखना चाहिए । धर्म का फल ऐसा न समझें कि धर्म करने से अगले जन्म में फल मिलेगा। धर्म हमें इसी जन्म में फल देता है। धर्म करने से इस जन्म में स्वर्ग और न करने से अगले जन्म में नर्क नहीं मिला करता । वास्तव में स्वर्ग-नरक की व्यवस्था व्यक्ति को पापों से बचने और पुण्य पथ पर अनुसरण करने के लिए बनाई गई है। फिर भी अगर स्वर्ग-नरक की कोई भौगोलिक स्थिति होगी तो होगी। जिसने अभी तक पाताल के नरक और आकाश के स्वर्ग को नहीं देखा वह तो यही कहेगा कि हम अपनी ही धरती पर स्वर्ग और नरक दोनों ही देखते हैं। बहुत से अमीर ऐसे हैं जिनके पास पैसा तो बहुत है लेकिन लकवे से ग्रस्त हैं, अपने धन का उपयोग नहीं कर पाते, उठ भी नहीं पाते ढंग से । घर में खूब सम्पन्नता है लेकिन डॉक्टर का कहना है यह मत खाओ, वह मत खाओ, सूखी रोटी और सब्जी भी एक चम्मच तेल में बनाना है। तो स्वर्ग और नरक यहीं हैं। हम नहीं समझ पाते हैं कहाँ स्वर्ग है और कहाँ नरक है। चार बेटे हैं और उनमें से कोई भी माता-पिता की सेवा नहीं कर रहा है तो यह क्या है ? इसे हम स्वर्ग कहेंगे या नरक ? बच्चे माँ-बाप के सामने चाहे जैसे बोल देते हैं, यह स्वर्ग है या नरक ? हमने ऐसे पुण्य नहीं किये कि बच्चे हमारा सम्मान करें, हमारी मान-मर्यादा रखें । यही तो व्यक्ति का पाप है, नरक है कि हमारे अपने ही बच्चे, हमारा अपना ही खून हमारी अवज्ञा करता है, हमारे विरुद्ध खड़ा हो जाता है, बगावत कर देते हैं।
जीवन से जुड़ा हुआ धर्म होना चाहिए, वर्तमान से जुड़ा हुआ धर्म हो। धर्म यही है कि क्रोध करोगे तो अशांति मिलेगी और यही नरक है। क्रोध किया अर्थात् गलत रास्ता अपनाया तो इससे अशांति, तनाव मिलना ही नरक है । ऐसा नहीं है कि क्रोध तो आज करेंगे और परिणाम अगले जन्म में मिलेगा। तब व्यक्ति को लगता है फल तो अगले जन्म में मिलेगा अभी तो चाहे जो करो। परिणाम तत्काल मिलता है। जो भी गलत या सही हम करेंगे उसका परिणाम शीघ्र सामने आ जाता है। कोई दुर्व्यसन किया, शराब पी, उससे शरीर में
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