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लोग किसी घड़ियाल की तरह त्रिवेणी तक, निर्वाण-पथ तक, बैकुंठ तक पहुँच जाते हैं, शेष लोग तो मंदिर की दहलीज़ तक पहुँचकर, संतों के निकट पहुँचकर भी वैसे के वैसे रह जाते हैं। घाणी के बैल की तरह जीवन भर यात्रा करने के बाद भी उन्हें कोई मंज़िल नहीं मिलती। ज्ञान का मूल्य तभी है जब ज्ञानी उसे जीवन में जीता है। धर्म का मूल्य है। धर्म इन्सान के लिए मुक्ति का चिराग है, तनमन को मुक्त करने वाली संजीवनी औषधि है। धर्म इंसान को आगे बढ़ाने वाला, उसकी आत्मा का निस्तार करने वाला किनारा है, नौका है, द्वीप है, शरण है, गति है, प्रतिष्ठा है।
घड़ियाल की कहानी हमें बताती है कि केवल धर्म को सुन लेने से, पढ़ लेने भर से किसी का कल्याण नहीं होने वाला । दुनिया में सुनने वाले करोड़ों हैं, बोलने वाले लाखों हैं लेकिन उसको जीने वाले गिनती के हैं । ज्ञान वह नहीं है जो किताबों से पढ़ा जाए, ज्ञान वह है जिसे जीवन में जिया जाए। अगर कोई दीपक को जलता हुआ देखकर आगे से निकल जाए तो दीपक उसका नहीं हो जाता। दीपक उसी का होता है जो उसके प्रकाश का उपयोग करने को तत्पर हो जाए।
__ भगवान महावीर जो स्वयं कभी राजकुमार थे उन्होंने धन के महत्त्व को गौण किया और धर्म के महत्त्व को स्वीकार किया। धर्म के महत्त्व को स्वीकार करने के कारण ही वे भी महलों से उसी तरह निकल गये जिस तरह कभी वह राजा गंगा-स्नान के लिए निकल पड़ा कि कोई घड़ियाल त्रिवेणी स्नान के लिए निकल पड़ा। जब तक धन का महत्त्व है व्यक्ति व्यापार करेगा, संसार में रहेगा, सुबह से लेकर रात तक अर्थोपार्जन ही करता रहेगा लेकिन विरले लोगों में धर्म का महत्त्व, धर्म का रंग, धर्म का स्वाद चढ़ जाता है तब वे अपने साथ धर्म की सुवास, धर्म की आराधना को जोड़ लेते हैं। हमारे मन में किसका महत्त्व है सभी कुछ इसी बात पर निर्भर करता है। कोई भोगता है, कोई छोड़ता है। वही व्यक्ति छोड़ता है जिसने भोग को व्यर्थ समझा है। लेकिन जिसके मन में उस प्रभु के प्रति प्रेम न पनपा, भीतर भगवत्ता की प्यास न जगी, अन्तरात्मा की पुकार जिसके भीतर न उठी, स्वयं का कल्याण, स्वयं का उद्धार करने का भाव जिसके भीतर अंकुरित न हुआ वे लोग ही धन को, अर्थ को महत्त्व देंगे। लेकिन जिन्होंने धर्म को समझ लिया वे उस पथ पर चल पड़ते हैं जो उन्हें मुक्ति और निर्वाण की
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