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'अतिथि आए हुए का सम्मान करते थे । घरों के दरवाजे पर लिखा रहता था देवो भव' । समय बदला, लोग 'सुस्वागतम्' लिखने लगे और समय ने करवट ली 'वेलकम' लिखने लगे। और अब तो अमूमन हर बड़े बँगले और ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं के गेट पर बोर्ड टँगा होता है 'कुत्ते से सावधान' । इन घरों में जाओ तो स्वागत करने वाला घर का सदस्य नहीं मिलेगा । वहाँ मिलेगा एक चौकीदार जो प्रायः अभद्रता से ही पूछेगा - ऐ, क्यों आया, चल बाहर निकल, भाग यहाँ से । क्या मालूम बाहर कोई भगवान ही दूसरे रूप में आया हो। कोई सांई आया हो, कोई गुरु अपना दूसरा रूप धरकर आया हो । अब उन्हें वेलकम करने वाले, शुक्रिया अदा करने वाले लोग तो मिलते ही नहीं, मिलते हैं भौंकने वाले कुत्ते या डंडा दिखाने वाले चौकीदार । लिखा मिलता है 'कुत्ते से सावधान', पता नहीं वह कुत्ता कौन है ? स्थितियाँ ज़रूर बदल गई हैं, लेकिन अपनी ओर से फूल - पांखुरी ही सही देने की पुण्य भावना अवश्य रखनी चाहिए। अपनी ओर से दीन - दुःखियों की मदद ज़रूर करें। भले ही धन से न कर सकें, पर मानवीय सहयोग किसी भी में इन्सान एक दूसरे का कर सकता है, केवल करने का भाव अवश्य रहना चाहिए। अन्यथा आपके पास जो भी है व्यर्थ ही रहेगा ।
रूप
एक भिखारी भीख माँगने के लिए राजपथ पर चल रहा था। सामने से राजा की सवारी आती हुई दिखाई दी । वह मन ही मन प्रसन्न हो गया कि आज तो राजा से कुछ अच्छा ही मिलेगा। लगता है आज घर से निकलते हुए कुछ अच्छा शगुन हो गया है कि राजा सा'ब खुद ही घोड़े पर चले आ रहे हैं। उनके सामने जाकर उन्हें प्रणाम करूँगा और अपना भिक्षापात्र फैलाकर कहूँगा हे महाराज ! हमारी झोली भरें, हमारी गरीबी दूर करें। इन भावों से भरा हुआ वह चला जा रहा था, मगर उसे ताज्जुब हुआ कि राजा का घोड़ा उसके सामने आकर रुका, राजा उस पर से उतरा और हाथ फैलाते हुए कहा - भाई मुझे कुछ दो । भिखारी ने सोचा - मैं तो इससे माँगने वाला था लेकिन यह तो मुझसे ही माँग रहा है। उसे गुस्सा तो बहुत आया, 'ना' भी नहीं कह सकता था क्योंकि सामने राजा खड़ा था । ना करने का परिणाम बुरा हो सकता था । उसके झोले में थोड़े से चावल पड़े थे, उसने हाथ डाला और बमुश्किल एक चुटकी चावल निकालकर राजा के हाथ में दे दिये । राजा ने धन्यवाद दिया और मुस्कुराकर चला गया ।
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