________________
तुम्हारे लिए परदा कर दिया अब तो खा लो। कहते हैं सांवरिया भी चले आए
और खिचड़ा खाने लगे। भगवान तो भावनाओं के भूखे होते हैं। उन्हें कौनसी रोटी खानी होती है, वे तो कृपालु हैं, दातार हैं, अपन लोगों को देते हैं तो अपना पेट भरता है, अपने चढ़ाए से क्या भगवान का पेट भरेगा। हम तो उसमें भी कंजूसी करते हैं मिठाई का डिब्बा ले जाते हैं और एक या दो डली चढ़ाकर पूरा डिब्बा वापस ले आते हैं। गीत के आगे की पंक्तियाँ हैं - “सांची प्रीत प्रभु से हो तो मूरत बोले काठ की” – तब काठ की मूर्ति भी बोलने लगती है। खिचड़ा खाकर सांवरिया पुनः मूर्ति में समा जाते हैं। बापूजी आते हैं और पूछते हैं - तूने सांवरियाजी को प्रसाद चढ़ाया ? उत्तर मिलता है - मुझसे क्या पूछते हो, सांवरिया का मुँह दिखता नहीं है क्या ?
यह सब भावनाओं का खेल है। भाव अच्छा रखेंगे तो सब कुछ अच्छा-अच्छा हो जाएगा। भावनाएँ एक मंदिर बन जाए । भावनाएँ फूलों का गुलदस्ता बन जाए। भावनाओं का संसार अगर अच्छा रहेगा तो हमारे कर्म, कर्म की प्रकृतियाँ, मनोदशाएँ, संबंध, यह संसार सब कुछ अच्छा, बेहतर और अनुकूल होगा। सार की बात इतनी-सी है कि शुभ भाव हो, शुभ लाभ हो, पर खर्च शुभ हो, कर्म शुभ हो। बस, इतनी जागरूकता रखें।
सभी को बहुत-बहुत प्रेमपूर्ण नमस्कार ।
१२८ Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org