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हुए
क्रोध और उत्तेजना को शांत करने वाली घटना यह है कि - एक एस. पी. दंगों पर काबू करने के लिए गया । जिस मोहल्ले में वह पहुँचा वहाँ के लोग क्रोध में भरे थे। उनमें से एक युवक आया और एस. पी. के मुँह पर थूक दिया। पास में खड़े थानेदार को गुस्सा आया, उसने रिवाल्वर निकाल ली और जैसे ही चलाने को ठहरो! थानेदार ने कहा उद्यत हुआ कि एस.पी. ने रोका और कहा
क्या बात
हुई सर, उसने आप पर थूका । एस.पी. ने कहा ठीक है थूका, पर क्या तुम्हारे पास रुमाल है ? हाँ, सर है - थानेदार बोला । और रूमाल निकाल कर दिया । एस. पी. ने रूमाल लिया और थूक पोंछकर फेंक दिया। कहा - आओ चलो । थानेदार बोला- सर, उसने आप पर थूका और आप कहते हैं चलो। एस. पी. ने कहा - भाई, एक बात जीवन भर याद रखना कि जो काम रूमाल से निपट सकता है उसके लिए रिवाल्वर चलाना बेवकूफी है।
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जो काम सुई से हो सकता है उसके लिए तलवार क्यों चलाई जाए। तलवार, रिवाल्वर अंतिम उपाय हैं। अगर गाली से काम चल सकता हो तो थप्पड़ क्यों मारी जाए, अगर डाँट से काम चल सकता है तो गाली क्यों दी जाए, प्रेम से समझाने से काम चल सकता हो तो डाँटा भी क्यों जाए ? इसका उलटा भी हो सकता है कि प्रेम से समझाने पर काम न चले तो डाँटो, डाँटने से काम न चले तो गाली दो, गाली से भी काम न चले तो थप्पड़ भी मारो। लेकिन पहले चरण में ही गेट आउट करना ठीक नहीं । यह तो असंयम की, अशांति की बात हो गई, अप्रेम की बात हो गई ।
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सबसे प्रेम करो, अपनी उत्तेजनाओं का त्याग करो, सबको सम्मान दो । जहाँ तक हो सके परिवार में, समाज में, पड़ोस में प्रेम - मिठास बाँटें । दूसरे के दुःख-दर्द में ज़रूर काम आएँ । देवरानी की डिलवरी होने वाली हो तो जेठानी आगे बढ़कर उसकी जिम्मेदारी सँभाले । तब देवरानी के दिल में आपके लिए अपने-आप जगह बनेगी । फिर भले ही वे अलग-अलग घर में रहते हों । ऐसे चार कदम आगे बढ़ने से, खुद मदद के लिए तैयार हो जाने पर हो सकता है दीवारें फिर भी बनी रहें, पर यह भाव ज़रूर उठेगा कि इस दीवार में एक दरवाजा ज़रूर निकाल लिया जाए, ताकि इधर-उधर आवागमन हो सके । प्रेम-मोहब्बत बढ़ती जाएगी। मैं तो प्रेम का पथिक और पुजारी हूँ, प्रेम का संत
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