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इन्सानियत के निर्माण के लिए लग जाए तो दुनिया चमन हो जाए, दुनिया का नक्शा बदल जाए । लेकिन हम तो केवल प्रार्थना कर सकते हैं।
महावीर जानते थे आतंकवाद की पाठशालाएँ चलेंगी, उग्रवाद के मदरसे चलेंगे, तभी उन्होंने अहिंसा की उद्घोषणा की। आतंक के मदरसों को अहिंसा
और शांति के मदरसे बनाने की पहल होनी चाहिए । इन्सानियत की पूजा और इबादत हो। केवल नमाज अदा करने से या पूजा-प्रार्थना करने से न तो खुदा
और न ही ईश्वर प्रसन्न होंगे। ईश्वर और खुदा का रहम तो इन्सानियत की इबादत से, उसे खुश करने से ही होगा। मंदिर और मस्जिद या धर्म स्थानों में बैठकर ही पूजा-प्रार्थना मत करो बल्कि इनसे बाहर निकलकर जो रो रहा है उसे उठाओ, उसके आँसू पोंछो । हम सब ईश्वर की रचनाएँ हैं, एक रचना दूसरी रचना के करीब आए, हम सब एक दूसरे के करीब आएँ, इसी शुभ भावना के साथ आज इतना ही -
नमस्कार।
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