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शुभ भाव शुभ लाभ शुभखर्च
विश्व के कुछ ज्ञानियों का मत है कि शरीर में वात, पित्त और कफ के असंतुलन से व्यक्ति को दुःख और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। कुछ ज्ञानी मानते हैं कि जन्म-कुंडली के ग्रह-गोचरों में अनुकूलता या प्रतिकूलता के आने पर व्यक्ति को जीवन में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है लेकिन आत्म-ज्ञानियों का अभिमत है कि व्यक्ति अपने जीवन में जैसे कर्म करता है उसके ही प्रतिफलों का सामना जीवन में करना होता है। कर्म व्यक्ति के अपने-अपने होते हैं। हाँ, अगर हम ग्रह-गोचरों में विश्वास रखते हैं तो उनका प्रभाव हम पर नहीं, ग्रह-गोचरों पर ही पड़ना चाहिए। लेकिन जब निजी तौर पर हमें प्रतिफलों का सामना करना होता है तो इसका अर्थ यही है कि हमारे कर्म ही समस्त सुख और दुःख के उत्तरदायी हैं।
कर्मों का अनुबंध करते हुए तो व्यक्ति को कोई बोध नहीं रहता लेकिन जब कर्मों का प्रतिफल मिलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। प्रतिफलों के समय एहसास होता है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं ! यह कितनी विचित्र बात है कि समुद्र-मंथन के समय ज़हर भी निकला था और लक्ष्मी भी निकली थी। विष्णु के हाथ में लक्ष्मी आई तो शंकर को विष मिला । तो क्या यह किसी वात, कफ, पित्त का अथवा ग्रह-गोचर का प्रभाव है कि एक को
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