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कैसे जिएँ आनंद से
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हमारे जीवन के दो पहलू हैं जिन्हें हम सुख और दुःख कहते हैं। सुख हमारा सपना है और दुःख हक़ीक़त । जीवन में चाहे सुख हो या दुःख इसके पीछे कारण ज़रूर रहता है। बिना वज़ह के न सुख मिलता है और न दुःख । सुख पाने के लिए प्रयत्न करना होता है और दुःख तो हमने ज़रूर ऐसे बीज बोए होंगे जिनके परिणामस्वरूप दुःख भोगने को मिलते हैं । जीवन में न सुख सुख है न दुःख दुःख वरन् दोनों ही हमारे किए गए कर्मों के परिणाम हैं। प्रकृति का विज्ञान यही समझाता है कि हर कार्य के पीछे कारण अवश्य छिपा होता है। हर मंज़िल को पाने का कोई-न-कोई रास्ता अवश्य होता है । हर बरगद के अतीत में बीज ही छिपा हुआ है। बिना कारण के कार्य सम्पादित नहीं होता, बिना वज़ह किसी भी चीज़ का वज़ूद नहीं होता ।
ज्ञानीजनों ने हक़ीक़त को समझा । उन्होंने सपनों को भी देखा और उन्हें पूरा करने का रास्ता भी समझने की कोशिश की। लेकिन जब उन्होंने दुःख को समझा तो उनकी अन्तरात्मा में यह ज्ञान - दृष्टि अवश्य विकसित हुई कि दुःख का कारण न व्यक्ति है, न वस्तु है, न परिस्थिति है । दुःख का कारण कुछ और है। उन्होंने दुःख के जो कारण समझे महावीर ने उसे अपनी भाषा में कहने का प्रयत्न किया तो बुद्ध ने अपनी भाषा में। दोनों ने जो कुछ भी कहा पहले उसके
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