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धारण करने होंगे और दूसरे को भी इन व्रतों की अनुपालना करनी होगी। वास्तव में ये पाँच व्रत दुनिया को दिए गए वे संदेश हैं जो दुनिया को सामाजिक स्तर पर एक दूसरे के साथ जोड़कर एक-दूसरे के लिए सहयोगी बनाते है।
महावीर ने जिसे पंच व्रत का नाम दिया है बुद्ध ने इन्हीं पाँच सिद्धान्तों को पंच शील की संज्ञा दी है और पतंजलि ने इन्हें पाँच यम कहा है। आज अगर महावीर, बुद्ध और पतंजलि तीनों की धाराओं को एक कर दिया जाए तो वह सिद्धांत किसी एक धर्म का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र का सिद्धांत कहलाएगा, सम्पूर्ण भारत का धर्म कहलाएगा। हम इन पाँच सिद्धान्तों को भारत के सिद्धांत समझें, मानवता के सिद्धांत जानें।
पहला सिद्धांत, पहला व्रत है अहिंसा । अहिंसा भारत की आत्मा है, विश्व-प्रेम और विश्व-शांति की धुरी है। अहिंसा से बढ़कर कोई धर्म नहीं और हिंसा से बढ़कर कोई पाप नहीं। आपके हाथ में अगर अहिंसा का दीप है, तो इसका मतलब है आपके हाथ में विश्व-प्रेम की पताका है। मैं अहिंसा का पथिक हूँ। महात्मा गाँधी अहिंसा के पुजारी थे। नेल्सन मंडेला अहिंसा के पोषक हैं। सम्राट अशोक पर अहिंसा को गौरव है। अहिंसा यानी मन, वचन, काया के द्वारा हिंसा का त्याग करना ही अहिंसा है। अपने भाषण और कृत्य के द्वारा किसी को भी ठेस न पहुँचाना अहिंसा है। ऐसी भाषा का उपयोग न किया जाए जो दूसरों के लिए मर्मांतक हो और ऐसे कृत्य या कार्य भी न किए जाएँ जो दूसरों के लिए हानिकर हों।
अहिंसा का मतलब है - 'जिओ और जीने दो।' 'जिओ और जीने दो' छोटा-सा सिद्धांत है, पर इन चार शब्दों में चारों वेदों का ज्ञान समाया है। मैं समझता हूँ पूरे संसार का अस्तित्व बचाए रखने के लिए हमें इसी सूत्र की
आवश्यकता है कि खुद भी जिओ और दूसरे को भी जीने दो। खुद भी शांति से जिओ और दूसरों को भी शांति से जीने का अधिकार दो। अगर हम शांति-पथ के उपासक बनना चाहते हैं तो हमें शांति भरे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। शांति की बातें तो सभी करते हैं, पर शांति भरी शब्दावली का प्रयोग नहीं कर पाते हैं। जब शांति भरे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते तो अशांति खड़ी हो जाती है और अशांति के आते ही हिंसा के निमित्त उत्पन्न हो जाते हैं।
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