________________
नहीं बोलना चाहिए । व्यक्ति जब क्रोध में होता है तब मुँह तो खुल जाता है, पर
आँखें बंद हो जाती हैं। जब व्यक्ति का मुँह खुल जाए और वह बेलगाम बोलने लगे तब हमें समझ जाना चाहिए कि इस व्यक्ति को क्रोध पैदा हो गया है । क्रोध पैदा हो जाए तो सीधा-सा उपाय है उस स्थान से हट जाएँ, नहीं तो जो उसका मुँह खुला है वह सब अपने ऊपर ही आकर गिरेगा। घर में किसी को भी क्रोध आए, वहाँ से हट जाओ, दस-पाँच मिनिट में उसका क्रोध अपने आप ठंडा पड़ जाएगा। अगर हम सामने रहे तो क्रोध और भड़केगा। इसलिए सावधानी से जागरूकतापूर्वक बोलना चाहिए। इसके उपरान्त भी कुछ ऐसा बोलने में आ जाए कि दूसरे को ठेस लग जाए जो क्षमा माँगने में नहीं हिचकिचाना चाहिए। रिश्तों में पुनः मिठास घोल लेनी चाहिए। संभव है रिश्ते न भी बन पाएँ तब भी अगर हमारे कारण किसी के दिल को ठेस लगी नहीं रहनी चाहिए। कोई हमें देखकर खुश हो या न हो, पर हमें देखकर क्रोधित तो न हो। उसके भीतर वैर-विरोध की गाँठ तो न बन जाए। भगवान हम सभी की रक्षा चाहते हैं इसीलिए वे कहते हैं सावधानी से। ___सावधानी से खाना - अहिंसा का तीसरा पाठ है। कितना सरल धर्म है यह, कितनी सरल बातें हैं । खाओ तो दिन भर मत खाओ, किसी का दिमाग मत खाओ (हँसी), खाओ तो ध्यान रखो कि जितनी ज़रूरत है उतना ही खाओ और ज़रूरत से ज़्यादा मत खाओ। अहिंसा का पाठ सिखाता है कि खाने वाले व्यक्ति को चार बातों का ख़याल रखना चाहिए जिससे स्वास्थ्य का भी संबंध बनता है - पहली बात है उगाना, दूसरी बात है पकाना, तीसरी बात है चबाना और चौथी बात है पचाना।
जब अन्न उगाया जाए तो हिंसामूलक खेती का उपयोग न हो । जो हमने उगाया है उसमें भी धर्म की आभा होनी चाहिए । जो हमने उगाया वह हमारे लिए स्वास्थ्यवर्धक होना चाहिए। आजकल खेती में कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है और इससे भी आगे बढ़कर दस लिटर पानी में एक लिटर शराब मिलाकर खेतों में छिड़की जा रही है और कहा जा रहा है कि अपने आप ही सारे कीटाणु मर जायेंगे। इस तरह शराब पी-पीकर जो अन्न पक रहा है वह अन्न खाकर हम भी आधे शराबी की तरह व्यवहार करेंगे । दुनिया तो व्यापार कर रही
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org