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अंतिम पाँचवाँ व्रत है - ब्रह्मचर्य । यह व्रत हमारी दृष्टि की पवित्रता के लिए है, आचरण और जीवन की पवित्रता के लिए है। ब्रह्मचर्य अर्थात् शील-व्रत, ब्रह्मचर्य अर्थात् चरित्र-निष्ठा । हमारे हाथ में अगर हमारा चरित्र है तो हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त है। चरित्र चला गया, तो जीवन को ही चूना लग गया। कृपया अपने चरित्र को चूना मत लगाओ। चरित्र का दीप सदा रोशन रखो।
कहते हैं - रावण के दस सिर थे। इस नाते उसके बीस आँखें थीं। रावण के आँखें बीस थीं, पर नज़र एक औरत पर थी। हमारे सिर एक है और आँखें दो, पर नज़र हर औरत पर है। सोचो, असली रावण कौन है ? ।
कुल मिलाकर महावीर के ये पाँच व्रत, पाँच सिद्धांत जीवन की शुद्धि के लिए हैं, जीवन के नैतिक मूल्यों के लिए हैं। हमारे नैतिक और सामाजिक मूल्यों के लिए ये पाँच मूल्य घर-घर, व्यक्ति-व्यक्ति पर लागू हों, यही महावीर हमसे चाहते हैं, यही बुद्ध और यही पतंजलि चाहते हैं। बस इतना काफी है।
सभी को अमृत प्रेम और नमस्कार ।
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