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आते हों, एक-दूसरे के गले मिलते हों वह सभा-मण्डप अहिंसा का तीर्थ बन ही जाता है।
प्रश्न है कि इस अहिंसा को प्रेक्टीकल रूप में कैसे जिएँ, सावधानी और जतन से कैसे जिएँ ? तब महावीर पहले चरण में कहते हैं - सावधानी से चलो। महावीर ने दो शब्द दिए हैं - समिति और गुप्ति । समिति का अर्थ है - सावधानी से प्रवृत्ति करना। और गुप्ति का अर्थ है - सावधानी से प्रवृत्ति करते हुए भी यदि हमसे कोई असावधानी हो जाए तो पुनः स्वयं को नियंत्रण में कर लेना ही गुप्ति है। समिति अर्थात् सम्यक् प्रवृत्ति और गुप्ति अर्थात् गोपन, नियंत्रण । जैसे खेतों पर काँटों की बाड़ लगाई जाती है ताकि उसमें दूसरा कोई प्रवेश न कर सके। हाथी पर अंकुश भी हाथी को नियंत्रण में रखने के लिए है। इसी तरह यह सावधानी भी हमें स्वयं पर नियंत्रण करने के लिए है। ग़लती किसी से भी हो सकती है। हम मनुष्य हैं और कितने भी ज्ञानी क्यों न हो जाएँ ग़लतियाँ होने की सम्भावना बनी ही रहती है। जो जितनी जागरूकता से जिएगा उससे उतनी कम ग़लती होगी, पर ग़लती होगी। जब तक हम सम्पूर्णतः आत्मज्ञानी नहीं हो जाते, सम्पूर्णतः मुक्त नहीं हो जाते, तब तक ग़लतियाँ होना स्वाभाविक है । ग़लती हो जाना ग़लत नहीं है पर ग़लती को दोहराते चलना निश्चित ही गलत है। ग़लती को कोई प्रोत्साहन नहीं देता। अगर कोई किसी को पत्थर मार दे तो उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती कि तुम जो करते हो बहुत अच्छा करते हो । ग़लती होने पर डाँट भी पड़ेगी। यह मनुष्य का स्वभाव है कि उसके द्वारा ग़लती हो सकती है। तभी तो बड़े लोग शिक्षा देते हैं कि इस बारे में सावधानी बरता करो, ध्यान रखा करो। तुम ग़लती पर ग़लती करो यह ठीक नहीं है। ग़लती होना स्वाभाविक है, नैसर्गिक है, लेकिन उस ग़लती को न दोहराना यह व्यक्ति की जागरूकता, सचेतनता, सावधानी है और यही अहिंसा का बुनियादी पाठ है। ___सावधानी से चलना अहिंसा का पहला पाठ है । असावधानी से चले तो कई नुकसान हो सकते हैं। जैसे- (१) ठोकर लगेगी। (२) कोई जीव-जानवर पाँवों के नीचे आकर मर सकता है । (३) काँटा गड़ सकता है, (४) ठोकर लगने से खुद के खून आ सकता है। (५) हम अस्पताल में जा सकते हैं (६) नगरपालिका के गटर में गिर सकते हैं। कहने का तात्पर्य है कि असावधानी के
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