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लोगों को तो साधना शुरू करने से पहले ९, ११, २१ या २७ दफा अवश्यमेव
___ ही चाहें तो पाँच पद या पूरा नवकार मंत्र का पाठ कर ही लेना चाहिए । चाहें तो णमो अरिहंताणं से णमो लोए सव्वसाहूणं तक ३५ अक्षर या पढमं हवई मंगलं तक ६८ अक्षरों का पाठ कर सकते हैं। ३५ अक्षरों की वंदना से ३५ आगमों की वंदना और ६८ अक्षरों की वंदना से ६८ तीर्थों की यात्रा का पुण्यफल अर्जित होता है।
नवकार मंत्र के ३५ या ६८ अक्षरों का उच्चारण न कर पाएँ तो प्रथम पद को ही ले लें - णमो अरिहंताणं - जिन्होंने जीता है अपने आप को उन्हें हमारे नमस्कार हों। ऐसे निर्दोष लोगों को प्रणाम करने से हम भी निर्दोष होंगे। श्रीमद् राजचन्द्र ने कहा है -
ते प्राप्त करवा वचन कौनूं, सत्य केवल मानवू ।
निर्दोष नर नूं, कथन मानो, तेह जेणे अनुभव्यूं। अर्थात् किस व्यक्ति का कथन अपने जीवन में स्वीकार करें ? उस व्यक्ति का कथन स्वीकार करो जो व्यक्ति निर्दोष हो चुका है। जो सारे दोषों से मुक्त हो चुका है, उस व्यक्ति के कथन को हम आदर्श बनाएँ । तब मन्त्र निश्चित रूप से हमारे लिए कल्याणकारी साबित होगा। अतीत में भी हजारों लोग मन्त्र से प्रेरित और प्रभावित हुए हैं। मन्त्र बोलते ही हम अनन्त-अनन्त सिद्ध, बुद्ध, मुक्त आत्माओं से एकाकार होने लग जाते हैं। मंत्र पराशक्तियों से जुड़ा हुआ तत्त्व होता है। हम लोग एकाग्र मन से मन्त्रोच्चारण करें । एकाग्र मन से किया गया मन्त्र-जाप, ध्यान, मन्त्र-स्मरण हमारे तन और मन को स्वस्थ करेगा। मंत्र हमारे लिए भीतर और बाहर दीपक का काम करेगा। मन्त्र तो देहरी का दीप होता है। अब हम प्रेम से आँखें बंद करेंगे और मन्त्र का उच्चारण करेंगे।
(मन्त्रोच्चारण प्रारम्भ.....)
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