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मन्त्र दिया है और इसे हर हाल में जपना ही है। अगर इस भावना से मन्त्र जाप कर रहे हैं तो कृपा करके माला रख दें। पहले मन्त्र प्रयोग का तरीका सीख लें, उसे समझ लें । मन्त्र को साधने की जो आवश्यकताएँ हैं उन्हें जान लें । यदि पाँच मज़दूर मिलकर किसी गड्ढे की खुदाई करें और पानी न निकले तो खोदना व्यर्थ है। इसी तरह किसी मन्त्र का सतत जाप करने के बाद भी कोई परिणाम न निकले तो इसका अर्थ यही होगा कि हमें अभी तक मन्त्र सिद्ध करने का तरीका न आया।
यदि किसी का मन ध्यान में न लगता हो तो मैं कहूँगा कि पहले वह मंत्रोच्चार करे । इतना अधिक मन्त्रोच्चार करे कि उसका रोम-रोम उस मन्त्र से प्रभावित हो जाए और जिस स्थान पर वह मन्त्रोच्चार करे वह स्थान मंदिर की तरह आदरणीय हो जाए। अगर हम पत्थर की मूर्ति को परमात्मा के प्रतीक के रूप में स्थापित करना चाहते हैं और उसे स्थापित करने की कोई विधि नहीं आती तो उस प्रतिमा के मूल स्वरूप को याद कीजिए और उसके मन्त्र के साथ लगातार सवा घंटे तक बिना रुके, मूर्ति को देखते हुए मन्त्रोच्चार करते रहिए। आपकी अन्तर्दृष्टि, आपके द्वारा किया गया मन्त्रोच्चार, मन्त्र-शक्ति ऐसा काम करेगी कि मूर्ति भी जीवंत हो जाएगी, उसकी प्राण-प्रतिष्ठा हो जाएगी। कोई पत्थर फिर पत्थर न रहेगा शिवलिंग, ज्योतिर्लिंग बन जाएगा।
__ मन्त्र द्वार है, इसलिए मन्त्र के बिना धर्म की शुरूआत नहीं होती। मन्त्र मन को धर्म से जोड़ने वाला सेतु है। मन्त्र तो रामसेतु का काम करता है, सुईधागे का काम करता है। मन्त्र की शक्ति अद्भुत है। यदि किसी भी मन्त्र को साधने का तरीका आ जाए तो आप अपने मन्त्र के जरिए घर का बड़े-से-बड़ा वास्तुदोष दूर कर सकते हैं, ग्रह-गोचर के अनिष्ट प्रभाव को दूर कर सकते हैं। मन्त्र में ताक़त होती है। पुराने ज़माने में ऋषि-मुनि गुफाओं में बैठकर तपस्या करते थे तो कहते हैं देवताओं को भी हाज़िर होना पड़ता था। आज लोग मन्त्र-जाप करते हैं तो क्या कोई देवता हाज़िर होते हैं ? अगर हाज़िर नहीं होते हैं तो हमें यह सोचना चाहिए कि क्या मन्त्र में कुछ कमी है या देवताओं में खोट आ गई है अथवा हम जाप करने वाले इन्सानों में खोट आ गई है।
मन्त्र को साधने का पहला तरीक़ा यही है कि मन्त्र का सबसे पहले
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