Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य देवगुप्तमरि का जोवन ]
[ ओसवाल संवत् ७५७-७७०
१५-निधान कलसादि पन्द्रह , , गणि पद
५-शान्ति शेखरादि पांच , उपाध्याय" इत्यादि पदवियों प्रधान की और सूरिजी इन पदवियों की जुम्मेवारी के विषय उनका कर्त्तव्य भी विस्तार से समझाया तथा त्याग का महत्व और दीक्षा से आत्म कल्याण पर खुब ही प्रभाव डाला फलस्वरूप में उसी सभा में कई ८ नरनारी सूरिजी के चरण कमलों में दीक्षा लेने को तैयार होगये। श्री संघने पुन महोत्सव किया और मोक्षाभिलाषियों को सूरिजी ने दीक्षा देकर उनका उद्धार किया और कइ दानवीरों ने संघ को पहरावणी भी दी तत्पश्चात सब लोग भगवान महावीर और प्राचार्य रत्नप्रभसूरि की जय ध्वनी के साथ अपने २ नगरों की और प्रस्थान किया।
श्राचार्य देवगुप्तसूरि का चतुर्मास चित्रकोट में होने से मेदपाट में आपका बहुत जबर्दस्त प्रभाव पड़ा बहुत प्राम नगरों के संघ ने अपने २ नगर की ओर पधारने की विनती करी ! सूरिजी ने फरमाया किवर्तमान योग । आखिर सूरिजी ने वहाँ से विहार किया और छोटे बड़े प्राम में विहार करते हुए आघाट नगर की
ओर पधार रहे थे जब वहां के श्रीसंघ को समाचार मिला तो उनके हर्ष का पारावार नहीं रहा बडे ही समारोह के साथ सूरिजी का स्वागत किया सूरिजी ने मन्दिर के दर्शन कर मंगलाचरण के पश्चात सारगर्भित देशना दी ! सूरिजी महाराज का व्याख्यान हमेशा त्याग वैराग्य पर होता था वहां के श्रेष्टिगोत्री मंत्री नाहरु ने भगवान पार्शनाथ का एक मन्दिर बनाया था जिसकी प्रतिष्ठा सूरिजी के करकमलों से करवाई इस प्रतिष्ठा का प्रभाव मेदपाट की जनता पर बहुत अच्छा हुश्रा था पांच पुरुष और तीन बहिनों ने सूरिजी के पास दीक्षा भी ली थी। जिससे जैन धर्म की काफी प्रभावना हुई।
जब सूरिजी मेदपाट को पावन बनाकर मरुधर में पधार रहे थे तो मरुधर वासिओं के उत्साह का पार नहीं रहा जिस प्राम में सूरिजी पधारते वहां एक यात्रा का धाम ही बनजाता था सैकड़ों हजारों नरनारी दर्शनार्थ आया करते थे इस प्रकार क्रमश आप शाकम्भरी पदमावती हंसावली मुग्धपुर होते हुऐ नागपुर पधारे आपका प्रभावोत्यादक व्याख्यान हमेशा होता था कई लोगों ने त्याग वैराग्य एवं तपश्चय कर लाभ vठाया वहां से सूरिजी खेमकुशल वटपार हर्षपूर माडव्यपुर पधारे । वहाँ पर डिड्गोत्रीय शाह ठाकुरशी के महामहोत्सव पूर्वक मुनि आशोकचन्द्र को सूरिपद से विभूषित कर उसका नाम सिद्धसूरि रखा तत्पश्चात् सूरिजी ने सात दिन के अनसन एवं समाधि पूर्वक स्वर्गवास किया ।
आचार्य देवगुप्तसूरि महाप्रभाविक और जैनधर्म के प्रचारक हुए आपने अपने तेरह वर्ष के शासन काल में खूब देशाटन कर जैनधर्म की उन्नति की अनेक मांस मदिरा सेवियों को जैनधर्म में दीक्षित किये कई मन्दिर मत्तियों की प्रतिष्टाए करवाई इत्यादि अनेक ऐसे ऐसे चोखे और अनोखे काम किये कि आपश्री की धवलकीर्ति भाज भी विश्व में अमर है ऐसे प्रभाविक आचार्यों से ही जैन शासन पृथ्वी पर गर्जना कर रहा है उन महापुरुषों का केवल जैनों पर ही नहीं पर विश्व पर उपकार हुआ है जिसको क्षणभर भी भुला नहीं जा सकता है।
प्राचार्यश्री के शासन में भावुकों की दीक्षाएँ १-कोरेटपुर के बलाह गौ० शाह भूराने सूरि० दीक्षा ली २-वडनगर के अदित्य गौ० . , नाहराने
, परिजी के कर कमलों से दीक्षाएं ]
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