Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ३५७-३७० वर्ष ]
भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
को सहन कर चार चार मास तक भूखे प्यासे रह कर उन अधर्म की जड़ उखेड़ कर धर्म के बीज बो दीये
और पिछले आचार्य ने उनका सीचन कर उसे हरा भरा एवं फला-फूला उपवन की भाति सम्रद्धशाली बना दिया है आर्य सुहस्ती सूरिने सम्राट सम्प्रति जैसे को जैन धर्म का प्रचारक बना कर आनार्य देशों तक जैन धर्म का प्रचार करवा दिया ! यही कारण है कि उन पूर्वाचार्य के प्रभाव से आज हम सुख पूर्वक विहार कर रहे हैं आज जो उपकेशवशं आदि महाजनसंघ मेरे सामने विद्यमान है यह उन आचार्यों के उपकार का ही सुमधुर फल है पर हमको केवल उन आचार्यों के बनाये हुए संघ पर ही हमारी जीवन यात्रा समाप्त नहीं कर देनी है ! पर हम भी उन पूज्य पुरुषों का थोड़ा बहुत अनुकरण करे ! प्यारे श्रमण गण आज आपके लिये सुवर्ण समय है पूर्व जमाने की अपेक्षा आज आपको सब प्रकार की सुविधा है ! यदि आप कमर कस कर तैयार हो जावें तो चारों और धर्म का प्रचार कर सकते हो और यहां के संघ ने यह सभा इसी उपदेश को लक्ष में रख कर की है ! मुझे श्राशा ही नहीं पर दृढ़ विश्वास है आप मेरे कथन को हृदय में स्थान देकर धर्म प्रचार के लिये कटिबद्ध तैयार हो जायेगें! शासन का श्राधार मुख्य आप पर ही है ! हां श्रावक वर्ग अपके कार्य में सहायक जरूर बन सकते है ! और इस प्रकार दोनों के प्रयत्न से धर्म का उत्कर्ष बढ़ सकता है ! इत्यादि सूरिजी ने उपदेश दिया और श्रवण करने वाले चतुर्विध श्री संघ में धर्म प्रचार की बिजली एक दम चमक उठी कई साधु तो भरी सभा में उठ कर अर्ज की कि पूज्यवर ! आपने हमारा कर्तव्य बतला कर हमारे जीवन में एक नयी शक्ति पैदा कर दी है जिससे हम लोग धर्म प्रचार के लिये हमारा जीवन अपर्ण करने में कटीबिद्ध एवं तैयार बैठे है । आप जिस प्रदेश के लिये श्राज्ञा फरमावे उसी प्रदेश में हम बिहार करने को तैयार है । फिर वहाँ सुविधा हो या कठनाइयों इसकी तनिक भी परवाह नहीं।
इस प्रकार श्राद्धवर्ग ने भी सूरिजी से प्रार्थना की कि पूज्यवर ! पूर्व जमाने में भी मुनियों ने धर्म प्रचार किया और आज भी मुनिवर्ग आप का हुक्म शिरोधार्य करने को तैयार है इसमें जो हमारे से बने वह हमें भी फरमाईये कि हम को भी लाभ मिले।
सरिजी महाराज ने फरमाया कि यह तो मुझे पहले से ही विश्वास था कि जिस त्यागवैराग्य से मुनिवरों ने स्वपर कल्याण कि भावना से दीक्षा ली है तो शासन सेवा करने में कब पिछे पैर रखेगें ! फिर भी आपके वीरता पूर्वक बचन सुन मुझे विशेष हर्ष होता है ! इसी प्रकार श्राद्ध वर्ग के लिए भी कहा।
प्रायः देश से पशुबली रुपी यज्ञप्रथ के पैर तो उखड़ गये है ! परन्तु बोद्धों का प्रचार कई प्रान्त में बढ़ता जा रहा है ! इस लिये आप लोगों को तत् विषय के साहित्य का अध्ययन कर प्रत्येक प्रान्त में बिहार कर स्वधर्म की रक्षा और प्रचार करे यह जुम्मेवारी आप लोगों पर छोड़ दी जाती है ! इत्यादि उपदेश के अन्त में सभा विसर्जन हुई इस सभा से चित्रकोट के लोगों का दिल को बड़ा ही संतोष हुश्रा कारण जिस उपदेश को लक्ष में रख सभा का अयोजन किया गया था उसमें आशातीत सफलता मिल गई इससे बढ़ कर खुशी ही क्या हो सकती है !
श्राचार्य देवगुप्तसूरि ने आये हुए श्रमण संघ के अन्दर कई योग्य मुनियों को पद प्रतिक्षित बना कर . उनके योग्य गुणों की कदर की एवं उनके उत्साह को बढाया जिसमें
७.-योगीन्द्र मूर्ति श्रादि सात साधुओं को पंडित पद १२-महन्द्र विमलादि बारह , , बांचनाचार्य पद
[ चित्रकोट में मुनियों को पद प्रधान :
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