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तृतीय क्षुल्लकाचारकथा अध्ययन
(४-५-६) कवित्तजुआ खेल, नाली-जुआ, छत्र को धरन सीस, वंदगी को करिवो र पान ही पहरियो । आगि को आरंभ, थान-दानी को अहार लैनो, पीढी खाट बैठियो, घरनि में ठहरियो । अंग को उबटनो, गृही की सेवा करिवो, स्वजाति को प्रकाश करिके ज पेट भरिवो । सचित्त मिश्रित भोग, आतुर है पूरव के भोगनि सुमरिवो ये दोस परिहरिवो ॥
___ अर्ष-अष्टापद१८-जुआ-शतरंज खेलना, नालिका - नाली से पासा डालकर जुआ खेलना, छत्र२०-छतरी धारण करना, चैकित्स्य२१-रोग की चिकित्सा (इलाज) करना, उपानत२२-पैरों में जूता पहिरना, ज्योतिःसमारम्मर 3 अग्नि जलाना, शय्यातरपिण्ड२४- स्थान देने वाले के घर से भिक्षा लेना, आसन्दीपर्य५ कुर्सी-पलंग आदि पर बैठना, गृहान्तरशय्या२६- भिक्षा लेते एपय गृहस्थ के घर बैठना, गात्र-उद्वर्तन"-शरीर का उबटन करना। गहिवैयावृत्त्य२०-गृहस्थ की वैयावृत्त्य करना, आजीव वृत्तित्ता--जाति कुल आदि बताकर भिक्षा प्राप्त करना. तप्तानिर्वतमोजित्व३°---अधपकी और सचित्त मिश्रित वस्तु को खाना, आतुर-स्मरण'—वीमारी आदि आतुरदशा में पूर्व-भुक्त भोगों का स्मरण करना।
दोहा . मूला आदा जीव-जुत, सेलरि के जे खंड ।
___ कंदमूल फल बीज ए, तर्ज सचित सब पिंड ॥
अर्थ- अनिवृत मूलक३२- सजीव मूली लेना या खाना, अनिवृत शृङ्गावर 33 सजीव अदरक लेना व खाना, अनिवृत इन खण्ड ४-- सजीव इच्छुखण्ड लेना व खाना २३५- सजीव कन्द लेना व खाना, सचित्तमूल-सजीव मूल लेना व खाना, मक फल - अपक्व फल लेना व खाना, आमकबीज--- अपक्व बीज लेना
. खाना।
कवित्त- साजी सिन्धु लोन, रोमा खार औ समुद्र-खार ।
ऊसर लवन काला लवन सचित्त है। अर्थ- आमक सौवर्चल-- अपक्व सज्जी खार लेना व खाना, आमक सैन्धव४० - अपक्व सेंधा नमक लेना व खाना, आमक रुमालवण' - अपक्व रोमा खार लेना व खाना, मामक सामुद्र-अपक्व समुद्री नमक लेना व खाना, आमक पांशुक्षार:- अपक्व ऊसर भूमि-जनित नमक का लेना व खाना, आमक काल लवण ४ .... अपक्व काला नमक लेना और खाना ।