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चतुर्थ षट्जीवनिका अध्ययन
दोहा-अजतन ते ठहर्यो हन, प्रानि भूत गन जोय ।
पाप करम ता फरि बंध, ताको कटुफल होय ॥ अर्थ-अयतनापूर्वक खड़ा होने वाला त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है। उससे पापकर्म का बन्ध होता है। वह उसके लिए कटुक फल देने वाला होता है।
दोहा-अजतन तें बैठो हन, प्रानि मत गन जोय ।
पाप करम ता करि बर्षे, ताको कटुफल होय ।। . अर्थ-अयतनापूर्वक बैठने वाला त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है। उससे पापकर्म का बंध होता है। वह उसके लिए कटुक फल देने वाला होता है।
बोहा-अजतन ते सूतो हनं, प्रानि भूत गन जोय ।
पाप करम ता करि बंधे, ताको कटुफल होय ॥ अर्थ-अयतनापूर्वक सोनेवाला त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है। उससे पापकर्म का बंध होता है । वह उसके लिए कटुक फल देने वाला होता है।
दोहा -- अजतन त खातो हने, प्रानि भूत गन जोय ।
पाप करम ता करि बंध, ताको कटुफल होय।। अर्थ-अयतनापूर्वक भोजन करनेवाला त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा ...रता है। उससे पापकर्म का बन्ध होता है । वह उसके लिए कटुक फल देने वाला होता है।
बोहा-अनतन तें कहती हन, प्रानि भूत गन जोय ।
पाप करम ता करि बर्ष, ताको फटफल होय ।। अर्थ-अयतनापूर्वक बोलने वाला त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है। उससे पापकर्म का बन्ध होता है । वह उसके लिए कटुक फल देने वाला होता है।