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दशम सभिक्षु अध्ययन
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छन्द- समीठ सदा अमूढ जो, संजम मान तपे विसासि होई ।
तपसों नसि पाप-पूर्व के संवृत जासु विजोग मिनु सोई॥
अर्थ-जो सम्यकदर्शी है, जो सदा अमूढ़ है, जो ज्ञान, तप और संयम के अस्तित्व में आस्थावान है, जो तप के द्वारा पुराने पापों को नष्ट करता है, जो मन, वचन और काय से सुसंवृत है, वह भिक्ष है ।
() चोपाई- चार प्रकार आहारहिं पाई कल वा परसों भागि हैं याही ।
यों चहि वासि न राखत जोई, न हिं रखवावत मिन क सोई॥
अर्थ-जो पूर्वोक्त विधि से विविध प्रकार के अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार को प्राप्त कर 'यह कल या परसों काम आयगा', इस विचार से संचय नहीं करता है और न दूसरों से संचय करवाता है, वह भिक्ष है।
चौपाई- चार प्रकार अहारहि पाई, समधरमिन निमंत्रि के खाई ।
पुनि प्रवचन-पाठहि रत होई, या विधि कर मिन है सोई॥
अपं-पूर्वोक्त प्रकार से विविधि अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार को प्राप्त कर जो अपने मार्मिकों को निमंत्रित कर उनके साथ भोजन करता है और जो भोजन कर चुकने पर स्वाध्याय में रत रहता है, वह भिक्ष है।