Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 329
________________ पोय पोयय पोरबीय (118 फलिह फाणिय कुम बहुदिव्य बहुनिवटिम बहुवाहर बहुसंभूय दशवकालिकसूत्र चू० १ श्लो० ४ पूज्य । ५।१७१ पूप, पुआ। २।४ प्रेक्षा, दृष्टि । ८.५३ पोत, बच्चा। ४।सू० ६ पोतज, जरा-रहित उत्पन्न होने वाला। ४।०८ पर्व बीज, जिसकी पोर ही बीज हो, ऐसे गन्ना आदि। ५।११६७ फलक, तख्ता, काठ का पाटिया । १७२७ १९ परिध, दरवाजे का आगल। ६५.११७१ 1 ६१७ फाणित, राव, द्रव-गुड़। ४ासू० २१ फूकना। ७।१८ बाप, पिता। ७।५२ बलाहक, मेघ । ५।१७३ बहुत बीज या नसा-जालवाला। ७.३३ गुठली वाला फल । ७.३६ अधिकांश भरा हुआ। १७॥३३ जिस वृक्ष के अधिक फल पक गये हों। २७.३५ ६।१७ कृत्रिम नमक । ५।११७३ बिल्व, बेल का फल । २२।२४ विभीतक, बहेडा । ४।सू०८ बीजरुह, बीज से होने वाली वनस्परि ७.३४ भर्जनीय, भूनने के योग्य । १३३ आदि भक्त, भोजन। ६५।२।३३ भद्रक, भला, श्रेष्ठ व्यक्ति । ८।२२ ७।१८ भागिनेय, बहिन का पुत्र, भानजा । ७।१५ भागिनेया, बहिन की पुत्री, भानजी। ६।६१ भूमि की दरार, फटी हुई जमीन । ७।३३ भूतरूप, वह वृक्ष-जिसके फलों में गुठली न पड़ी ही। ६।१५ संयम-मंग के स्थान का त्यागी । बिहेलग बीयसह मन्जिम भत्त भद्दा माइणेन्ज माइणज्जा भिलुगा भूयत्व भेयाययणवनि

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