Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 328
________________ परिशिष्ट : शब्द-कोष ३०५ पमेइल पयत्तलठ्ठ पयावंत परग्य पवील पाणहा पाणिपन्जा ७/२२ प्रसाद। ७४२ प्रयत्न से सुन्दर किया गया । सू० ४१६ बार-बार सुखाता हुआ। ७।४३ पराय, बहुमूल्य । ४ सू० १६ निचोड़ना। ३०४ उपानह, जूता। ७।३७ प्राणिपेया, तट पर बैठे प्राणियों के द्वारा पीने योग्य जल वाली नदी। ५॥१॥५५ साधु को देने के लिए उधार लिया अन्न-पान । ७।३२ पाकखाद्य-भूसे आदि में रखकर पकाने के बाद खाने योग्य फल । ८।४३ परत्र, परलोक। ५।१।१८ प्रावार, कम्बल आदि ओढ़ने का वस्त्र । ७।१५ पितृस्वसा, पिता की बहिन, बुना। ६४७ अन्नपिंड, भोजन । पामिन्च पायखज्ज पावार पिउस्सिय पिड (५१॥३३ पिष्ट, आटा। पिट्ठ पिटिठमंस पिण्णाग पियाल पिहुखज्ज पिहुजण ।२।२२ ८।४६ चुगली। ।।२२ तिल-सरसों आदि की खली। ५।२।२४ चिरोंजी। ७.३४ पृथुखाद्य, चिवड़ा बनाकर खाने योग्य । चु० १ श्लो० १३ साधारण मनुष्य । ४।सू० २१ मोर पंख। ४।सू२१ मोर-पिच्छी। ५।६ पुरुषकारिता, पुरुषार्थ, उद्योग । 5॥१॥३२ पुरः कर्म, भिक्षा देने के पूर्व सचित्त जल से । ६५३ हाथ आदि धोना । १०।१६ उन्मत्त, पागल । पिहुण पिहुणहत्य पुरिसकारिया पुरेकम्म पुल १५।।२२ पूर्ति, दुर्गन्ध-युक्त। पूइकम्म ५।११५५ वह भोजन आदि, जिसमें साधु के लिए बनाये भोजन आदि का अंश मिला हो।

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