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प्रथम रतिवाक्या चूलिका
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साघु
को ये इन्द्रियां उसी प्रकार विचलित नहीं कर सकती हैं, जिस प्रकार कि वेगवाली गांधी सुदर्शनमेरु को विचलित नहीं कर सकती है।
(१२)
चोपाई - तातें ज्ञानी एम विचार, लाभ-अलाभ हिये अवधार ।
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मन वच तन की गुपति करेय, जिनवानी का आश्रय लेय ॥ निज आतम में अब पिर होहु, संजम तें मत भूल चलेहु । मानुष भव को लाहा लेहु, अविचल शिवपद शीघ्र ही लेह ॥
अर्थ - इस प्रकार बुद्धिमान मनुष्य सम्यक् पर्यालोचन कर तथा विविध प्रकार
के लाभ और उनके साधनों को जानकर मन वच काय गुप्ति से गुप्त (सुरक्षित) होकर जिन वचनों का आश्रय लेवे ।
ऐसा मैं कहता हूं ।
प्रथम रतिवाक्या चूलिका समाप्त ।
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