Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 321
________________ २९८ मल्लीन-पलीण-गुत्त अविहेडम असपर असंविमागि असच्चमोसा मसत्य परिणय दशवकालिकसूत्र ८।४० इन्द्रिय और मन से संयत । ११० अविहेठक, दूसरों का तिरस्कार नहीं करने वाला। ७.३३ असंस्तृत, फल-भार धारण करने में असमर्थ । ६।२।२२ सधर्मा श्रमणों को भक्त-पान का समुचित विभाग नहीं करने वाला। ७३ असत्यामषा, व्यवहारभाषा, जो न सत्य हो और न असत्य, ऐसी आमंत्रणी, आज्ञापिनी भाषा। ५।१।२३ वह वस्तु-जिसकी सचित्तता किसी विरोधी वस्तु द्वारा नष्ट न हुई हो। ५॥१९८ असूपिक, व्यंजन रहित । १४ यथाकृत, गृहस्थ द्वारा अपने लिए बनाया गया भोजन । चू० २।१४ आकीर्णक, उत्तम जाति का घोड़ा। ३६ आतुरस्मरण, आतुर अवस्था में पहले भोगे हुए भोगों का स्मरण करना। ७.५६ आनुलोमिका, अनुकूल भाषा । चू० १११ शीघ्रघाती रोग । ५।२।३४ आयतार्थी, मोक्षार्थी । ६।२।४ भाचार-गोचर, क्रिया-कलाप । 5 ३३५ १६.५३ आदि भद्रासन, बिना तकिये का आसन । अहागर आइन्सम बाउरस्सरण आणुलोमिया आयंक आपछि मायार-गोयर आसंदी भासब ११०५ आस्रव, कमों का मात्मा में आना। आसायणा बासालय आहियग्गि चु० २-३ इन्द्रिय-विजय-युक्त-प्रवृत्ति । ९।१२ आदि गुरु का अपमान, असभ्य व्यवहार । ६।५३ आशालक, तकिया वाली कुर्सी। ६।१११ आहिताग्नि, अग्नि का उपासक, अग्नि को ३१ सदा प्रज्वलित रखनेवाला ब्राह्मण । ५१६५ ईंट का टुकड़ा। चू० ११ इत्वरिक, अल्पकालिक । ५।२८ ऐपिथिकी, गमनागमन-सम्बन्धी प्रतिक्रमण क्रिया । इहाल इत्तरिय हरियावहिया

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