Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 314
________________ उपसंहार २९१ बिनु संबन सेवन किये, बिन तप कोने तात ? क्यों कटते बाके करम, नेक विचारह बात' ॥८॥ तब सबने ऐसे कही-'धन्य धन्य - प्रभु बाप ॥ भव-भय - मंजन - हार हो, आपहि सांचे बाप ॥॥ ऐसे बया- निधान • कृत, यह आगम को सार । संत पुरुष धारन करत, तुरत लहत भव-पार ॥१०॥ संगति के व्यवहार को है यह उत्तम पंप । 4 गृहस्थ हू जो गहै, सहज बहै सत-पंच ॥११॥ हिसादिक पुरगुन तजे, मज सकल गुन सार ।। सरल विनय-संजुत रहे, लहै अवस भव-पार ॥१२॥ भाषा पत्रकार का निवेदन सो प्राकृत में पाठ है, टीका टवा अनेक । बब बानी के पदनि में, अब लग हुतो न एक ॥१॥ श्रीयुत मिश्रीमल्ल मुनि, मोसों आयसु बीन । तब मैं आगम-वचन गहि, पब-रचना यह फोन ॥२॥ कलुक पाठ अनुसार है, भली भांति अनुवाद । कहूँ कछुक विस्तार करि, सहन गयो अत-स्वाद ॥३॥ सार भाव सरबत गयो, विसम बद्यौ कछु नाहिं । चक होय सो करि कृपा, साघु सुधारहिं ताहि ॥४॥ उपाध्याय श्री आत्म मुनि-तिलक-माष्य कृत एक । ताके अधिक अधार सों, विरच्यो सहित विवेक ॥६॥ गगन नंद विधि इंदु पर, दीपावलि दिन पाय । जोध नगर में यह बन्यो, मारवार के मांग ॥६॥ प्राम कुचेरा-वासि हुं मापुर अमृतलाल । 'भाषा - भूषण' तिन करी, छंदोबड रसाल ।

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