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द्वितीय विविक्तचर्या चूलिका
चौपाई- अब मैं कहूं चूलिका सार, जो जिन-भाषित ज्ञान-भंडार ।
सुन कर जिसे पुण्य-धर जीव, धर्म में धारै मती अतीव ।।
अर्थ-मैं केवली जिनदेव भाषित और आचार्यों से सुनी चूलिका को कहूंगा, जिसे सुनकर पुण्यवान जीवों की धर्म में बुद्धि उत्पन्न होती है ।
चौपाई- बहु जन विषय-भोग-अनुकुल, गमन करें लक्ष्य-प्रतिकूल ।
जब जन विषय-मोग-प्रतिकूल, गमन करें पावें भव-कूल ।।
अर्ष-अधिकतर लोग स्रोत के (भोग-मार्ग के) अनुकूल प्रस्थान (गमन) कर रहे हैं किन्तु जो मुक्त होना चाहना है जिसे प्रतिस्रोत (विषय-भोग के प्रतिकूल) मार्ग में गमन करने का लक्ष्य प्राप्त है, जो विषय-भोगों से विरक्त हो संयम की आराधना करना चाहता है, उसे अपनी आत्मा को स्रोत के प्रतिकुल ले जाना चाहिए अर्थात् विषय-भोगों में प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिए।
चौपाई- सुखी होंय जन भोग सुभोग, सुखी होंय जानी तप-योग ।
भोग-योग बाढ़े संसार, तपोयोग से हो भव-पार ॥
अर्थ-जन-साधारण स्रोत के अनुकूल चलने में सुख मानते हैं। किन्तु जो सुविहित साधु हैं वे तप साधना रूप प्रतिस्रोत चलने में सुखी होते हैं । आस्रव (इन्द्रिय-विजय) प्रतिस्रोत होता है । अनुस्रोत संसार है (जन्म-मरण की परम्परा है)
और प्रतिस्रोत उसका उतार है अर्थात् जन्म-मरणरूप संसार से पार होना है।
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