Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 310
________________ द्वितीय विविक्तचर्या चूलिका २८७ निपुण साथी न मिले तो पापकर्मों का परिहार करता हुआ और काम-भोगों से अनासक्त रहता हुआ साघु अकेला ही विहार करे । (११) मास अधिक जहं वासा होय । चौमासा न तहां पुनि करे || चौपाई - चौमासा इक पूरा दोय मास अन्तर विन होय, करे, अर्थ - जिन गांव या नगर में मुनि वर्षाकाल में चार मास और शेष काल में एक मास रह चुका हो, दो चातुर्मास और दो मास का अन्तर किये बिना मुनि को नहीं रहना चाहिए । साघु सूत्र ( आगम) मार्ग से चले और सूत्र का अर्थ जैसी आज्ञा दे, उसी प्रकार से चले । (१२) चौपाई -- पूरब और अपर निशिकाल, आत्मालोचन करे संभाल । कीना क्या करना क्या शेष रहा प्रमाद-वश मुझ से शेष || अर्थ - जो साघु रात्रि के पहिले और पिछले पहर में अपने आप अपना आलोचन करता है कि मैंने क्या किया और क्या कार्य करना शेष है । वह कौन-सा कार्य है, जिसे मैं कर सकता हूं, पर प्रमाद-वश नहीं कर रहा हूं । (१३) चोपाई - लवं अन्य क्या मेरो भूल, देखूं या अपनी ही भूल । कौन चूक मैं तजी न अबलों, यों विचार अब तो मैं संभलों ॥ आगे का निदान नह करे, वर्तमान ममता परिहरे । निन्दा गहरा मुनि नित करे, शान्तभाव रख नित ही विचरे ॥ अर्थ - क्या मेरे प्रमाद को कोई देखता है, अथवा अपनी भूल को मैं स्वयं देख लेता हूं। वह कौनसी चूक है, जिसे मैं नहीं छोड़ रहा हूं ? इस प्रकार भली-भांति से आत्म-निरीक्षण करता हुआ साधु अनागन का प्रतिबन्ध न करे, अर्थात् न असंयम में बंधे और न आगे के लिए निदान करे ।

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