________________
वशन समिक्ष अध्ययन
नाराषछन्द- सदेव बेह-राग को जु त्याग ही किये रहे,
कुवाक्य मार-पीट, बेह-घाव ह भए सहै। मही-समान है मुनी निदान-हीन होय है,
त कुतूहलानि को सु मिन होत सोय है ॥ ___ अर्थ-जो मुनि बार-बार देह का व्युत्सर्ग और त्याग करता जो गाली सुनने, पीटे और काटे जाने पर भी पृथ्वी के समान सब कुछ सहता है जो निदान नहीं करता और जो कौतूहल-रहित है, वह भिक्ष है।
(१४) छन्द-- परीसहानि को जीति बेहसों, जनम-पंय सों आत्म-उतरे ।
भय महालखी जन्म-मृत्यु को नमनता तपोलोन मिन सो ॥
अर्ष-जो शरीर से परीषहों को जीतकर (सहन कर) जाति-पथ (संसार) से अपना उद्धार कर लेता है, जो जन्म-मरण को महा भयकारी जानकर श्रमण-सम्बन्धी तप में रत रहता है, वह भिक्ष है।
छन्द- कर-संजती पाय-संजती वचन-संजती इंद्रि-संजती ।
रत अध्यात्म में, शान्त आतमा, लखत सूत्र के अर्थ भिक्ष सो॥
अर्थ-जो हाथों से संयत है, पैरों से संयत है, वाणी से संयत है, इन्द्रियों से संयत है, जो अध्यात्म में रत है, जो भली-भांति समाधिस्थ है तथा जो सूत्र और अर्थ को यथार्थ रूप से जानता है, वह भिक्ष है।