Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 293
________________ २७० दशवकालिकसूत्र मूल- जया व वंदिमो होइ पच्छा होइ अदिमो । देवया व चुया ठाणा स पच्छा परितप्पइ ।। संस्कृत- यदा च वन्द्यो भवति पश्चाद् भवत्यवन्द्यः । देवतेव च्युता स्थानात् स पश्चात् परितप्यते ॥ मूल- जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो । राया व रज्जपमठो स पच्छा परितप्पइ ॥ संस्कृत- यदा च पूज्यो भवति पश्चाद् भवत्यपूज्यः । राजेव राज्यप्रभ्रष्टः स पश्चात् परितप्यते ।। मूल- जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अमाणिमो । सेट्ठिम्य कवडे छूढो स पच्छा परितप्पइ ॥ संस्कृत- यदा च मान्यो भवति पश्चाद् भवत्यमान्यः । श्रेष्ठीव कर्वटे क्षिप्तः स पश्चात् परितप्यते ।। मूल- जया य थेरओ होइ समइक्कंतजोव्वणो । मच्छोव्य गलं गिलिता स पच्छा परितप्पइ ॥ संस्कृत--- यदा च स्थविरो भवति समतिक्रान्तयौवनः । मत्स्य इव गलं गिलित्वा स पश्चात् परितप्यते ।।

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