Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 294
________________ प्रथम रतिवाक्या चूलिका २७१ चौपाई- जिमि व्युत देव स्वर्ग तें होय, वन्दनीय रहे नहिं कोय । तिनि संजम-बुत जति जब होय, पश्चात्ताप कर है सोय ।। संजम जब लों तब लों बंध, संजम विनु वह होय अवंद्य । देव थान-चुत जैसे होय, पश्चात्ताप कर है सोय ॥ अर्ष- जब तक साधु संयम में रहता है, तब तक वह सब लोगों का वन्दनीय होता है किन्तु संयम को छोड़ने के पश्चात वही अवन्दनीय हो जाता है। जैसे अपने स्थान से च्युत देव पश्चात्ताप करता है, उसी प्रकार वह संयम-भ्रष्ट माधु भी पीछे पश्चात्ताप करता है। चौपाई- संजम जब लों तब लों पूज्य, संजम बिनु वह होय अपूज्य । राज्य-भ्रष्ट राजा ज्यों होय, पश्चात्ताप कर है सोय ॥ अर्थ-जब तक साधु संयम में रहता है तब तक वह लोगों से पूजनीय होता है। किन्तु संयम छोड़ देने के बाद वह अपूजनीय हो जाता है । जैसे राज्य-भ्रष्ट राजा पश्चात्ताप करता है, उसी प्रकार वह साधु संयम से भ्रष्ट हो जाने के बाद पश्चात्ताप करता है। चोपाई . संजम जब लों तब लो मान्य, संजमु बिनु वह होय अमान्य । गांव पड़ो सेठी जिम रोय, पश्चात्ताप कर है सोय ॥ अर्ष जब तक साधु संयम में रहता है, तब तक सब लोगों का माननीय होता है। किन्तु संयम से भ्रष्ट होने के बाद वह अमाननीय हो जाता है । जिस प्रकार नगर से भ्रष्ट हुआ सेठ छोटे से गांव में रहता हुआ पश्चात्ताप करता है उसी प्रकार संयम से भ्रष्ट हुआ वह साधु भी पीछे पश्चात्ताप करता है। चोपाई संजम तजि जब बूढ़ा होय, तब निन्दा अति पावं सोय । कांटा निगल मत्स्य ज्यों होय, पश्चात्ताप कर है सोय ॥ अर्ष-जिस प्रकार लोहे के कांटे पर लगे हुए मांस को खाने के लिए मछली उस पर झपटती है, किन्तु गले में कांटा फंस जाने से पश्चात्ताप करती हुई मृत्यु को प्राप्त होती है, उसी प्रकार संयम से भ्रष्ट हुआ साधु यौवन अवस्था के बीत जाने पर जब वृद्धावस्था को प्राप्त होता है तब वह पश्चात्ताप करता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335