________________
पंचम पिण्डैषणा अध्ययन
(प्रथम उद्देशक)
दोहा-समय पायके भीख को भ्रांति-रहित विनु राग । .
या विधि खान रु पान कों, ढूंढन में मुनि लाग ॥ अर्थ-मिक्षा का काल प्राप्त होने पर मुनि भ्रान्ति-रहित एवं मूरिहित होकर आगे बतलाये जाने वाले क्रम-योग से भक्त-पान की गवेषणा करे ।
(२)
दोहा-गयो गोचरी-काज मुनि, पुर गामादिक-माहि ।
पलं मंद, उबवेग-विन, इत उत चित न चलाइ ॥ अर्थ-ग्राम या नगर में गोचरी के लिए गया हुआ वह मुनि धीमे-धीमे, द्वेग-रहित एवं विक्षेप-रहित शान्त-चित्त होकर ईर्या-समिति-पूर्वक चले।
बोहा-आगे को जोवत चल, निज-तनु के परमान ।
बीज हरित को परिहरि, बंतु, जल हु मृतिकान ॥ वर्ष-सामने युग-प्रमाण चार हाथ भूमि देखता हुआ, बीज, हरियाली (वनस्पति), द्वीन्द्रियादि प्राणी, सचित्त जल और सचित्त मिट्टी को बचाता हुमा चले।